आज 12 अक्टूबर को फार्मर डे है यानि किसान दिवस। किसानों की समृद्धि और खुशहाली को जाहिर करने के लिए इस दिवस का आयोजन किया जाता है,

लेकिन बैतूल जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले में किसानों के लिए हर दिन चुनौती भरा और परिश्रम वाला होता है। जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर ग्राम बघोली के कृषक गणपत बारस्कर और २२ किमी दूर ग्राम सुनारखापा के आदिवासी कृषक रामदास परपाची की कहानी आपस में काफी मिलती जुलती है। सरकार ने इनके लिए कई योजनाएं तो चला रखी है लेकिन इन योजनाओं का लाभ अंतिम छोर के किसान तक नहीं पहुंच पाया है। हम बात करते हैं ग्राम बघोली में रहने वाले कृषक 42 वर्षीय गणपत पिता गेंदराव बारस्कर की। जिनके पास नौ एकड़ जमीन है लेकिन लंबी बीमारी के चलते वे स्वयं खेती के लिए परिवार पर आश्रित हो चुके हैं। खेत में बना पुश्तैनी कुआं पिछले साल बारिश में धंस गया था। जिसमें मोटर भी चली गई। कुआं धसने की जानकारी तहसीलदार को दी गई थी लेकिन कोई मुआवजा नहीं मिला। गरीबी रेखा में नाम नहीं होने के कारण राशन के लिए खेती पर ही निर्भर होना पड़ता है। पिछले साल गेहूं बोया था लेकिन ओलावृष्टि में पूरी फसल बर्बाद हो गई आज तक इसका मुआवजा नहंीं मिला है। गणपत पर स्टेट बैंक में केसीसी का २ लाख १७ हजार का कर्ज है।जो ओवरड्यू हो चुका है। सरकारी योजना कोई लाभ नहीं मिला है बीमार होने पर जिला प्रशासन ने उन्हें पांच हजार की आर्थिक सहायता दी थी। गणपत ने बताया कि खेत में मोटर पंप चलाने के लिए बिजली कनेक्शन लिया था लेकिन विद्युत कंपनी ने चोरी का प्रकरण बना दिया।जमीन हल्की बर्री होने के कारण खेती करने में मुश्किलें आती है, लेकिन पेट भरने के लिए खेती करना पड़ता है।
वहीं बैतूल से २२ किमी दूर ग्राम सुनारखापा में रहने वाले आदिवासी कृषक रामदास परपाची के पास ६ एकड़ पुश्तैनी जमीन है और इस जमीन पर कुआं भी है। जिसे ३० हजार का कर्ज लेकर उन्होंने बनवाया था लेकिन इस साल बारिश में कुआं धंस गया है। डीजल पंप से सिंचाई करते हैं लेकिन डीजल महंगा होने के कारण बिजली कनेक्शन के लिए खसरे की नकल निकालने बुधवार को उन्हें अपने साथियों के साथ बैतूल आना पड़ा। रामदास ने बताया कि अभी खेत में मक्का और ज्वार लगाई है। पिछले साल गेहूं की फसल बर्बाद हो गई थी लेकिन अभी तक मुआवजा नहीं मिला है। सोसायटी में खाता नहीं होने के कारण खाद-बीज भी नहीं मिलता है। बाजार से महंगे दामों में खरीदना पड़ता है। गरीबी रेखा का राशन कार्ड नहीं है लेकिन सफेद कार्ड में गेहूं-चावल मिल जाता है। मकान पुश्तैनी होने के कारण जर्जर और कच्चा है। पंचायत में एक साल पहले आवास योजना के लिए आवेदन किया था लेकिन पता नहीं क्या हुआ। रामदास बताते हैं कि उनके तीन बच्चे हैं जिसमें एक लडक़ी है। दोनों गांव से डेढ़ किमी दूर गोंडीगौला सरकारी स्कूल में जाते हैं। किसी तरह यह परिवार खेती कर गुजर-बसर कर रहा है कि कभी तो अच्छे दिन आएंगे।

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