⁃ क्या मंदिर वहाँ के पुजारियों की बपौति है?
– देवी के मंदिर में औरतों का अपमान करने वाले पंडित कहें जाएँगे या गुंडा?
घर जाओ तो अम्मा ज़ोर दे मंदिर भेज ही देती हैं. उनका मन रखने के लिए एकाध मंदिर के चक्कर लग ही जाते हैं. इस बार भी उन्होंने ‘चामुण्डा स्थान’ भेजा ही.
‘चामुण्डा स्थान’ चामुण्डा देवी का मंदिर है. जो बावन शक्तिपीठों में से एक है. ऐसी मान्यता है कि ‘शिव’ जब ‘सती’ के शव को ले तांडव कर रहे थे, तब विष्णु ने उन्हें रोकने के लिए सती के शव के कई टुकड़े किए. उन्हीं में से एक टुकड़ा यानी सती का ‘सिर’ वहाँ गिरा. और वह स्थान ‘चामुण्डा’ देवी के नाम से प्रसिद्ध हो गया.
पहले वहाँ एक छोटा सा मंदिर था. बाद जब ‘चंद्रशेखर’ प्रधानमंत्री बनें तो उन्होंने वहाँ एक भव्य मंदिर बनवाया. अब वहाँ सालों भर मेला जैसा माहौल रहता है. आस-पास के गाँव के सभी लोग दर्शन के लिए आते हैं. सबकी मन्नतें पूरी हो जाती है वहाँ जाने से. ऐसा अम्मा बताती हैं.

ख़ैर, तो वजह जो भी हो उन्होंने भेजा मंदिर. साथ ही उन्होंने ये भी बताया था कि, “वहाँ एक बाबा होते हैं, जो मौली-कुंकुम बाँधते हैं. तो उनसे बँधवा उन्हें पैसे दे देना.”
साथ ही साथ उन्होंने ये भी बताया कि मंदिर का द्वार एक बजे बंद हो जाता है, तो बारह बजे तक पहुँच ही जाना.
तो लगभग हम साढ़े 11 बजे के आस-पास वहाँ पहुँचे. पहुँचते ही लगभग दुकान-वाले सब फूल माला ख़रीदने के लिए टूट पड़े. हमने एक दुकान से जो लेना था लिया और ऊपर गये.
हम पूजा की थाली आगे बढ़ाए जो पंडित जी थे, उन्होंने पूजा कर थाली हमें वापिस दिया और मंदिर का पर्दा खींच लिया.
हमारे पीछे जो औरतें लाइन में थीं उन्होंने कहा कि अभी तो 11:40 ही हुआ है. आप पर्दा क्यूँ खींच रहें हैं? दरवाज़ा क्यूँ बंद कर रहे हैं?
उसके बाद जो हुआ वो मुझे एक्सपेक्टेड नहीं था.
वहाँ के दोनों पंडितों ने जिस बदतमीज़ी से उन औरतों के सलूक किया वो उन्हें पंडित कम और गुंडा ज़्यादा बता रहा था. उन्होंने धक्का मारते हुए मंदिर का कपाट बंद कर दिया.
ऐसा लगा कि मंदिर, मंदिर न हो कर उनके बाबू जी की प्रोपर्टी हो. आस-पास खड़े कई और लोग ने भी कहा कि अभी एक नहीं बजा है, दरवाज़ा खोलिए मगर उस पंडित ने सबको झाड़ते हुए, बहुत ही बेवक़ूफ़ाना लहजे में चले जाने को कहा.
बेचारी गाँव की सीधी औरतें वहीं सीढ़ी पर बैठ एक बज़ने का इंतज़ार करने लगीं.
मैं उन औरतों से बात करने गयी तो पास खड़े एक सज़्ज़न पुरुष ने बताया. ये पंडित दादागिरी करते हैं. औरतों के साथ ऐसे बदसलूकी लगभग रोज़ ही होती हैं. ख़ास कर वो जो ग़रीब दिखतीं हैं. मगर उनके ख़िलाफ़ कोई कुछ नहीं कहता क्यूँकि ’कटरा’ गाँव के दबंगों का हाथ है उनके सिर पर.
जो कुछ वहाँ घटा मेरी आँखों के सामने वो मेरे मंदिर नहीं जाने के विचार को और पुख़्ता कर दिया.
आप सोचिए एक देवी के मंदिर में इस तरह से स्त्रियाँ और उस देवी को मनाने वाले श्रद्धालु अपमानित किए जायें, क्या इससे देवी ख़ुश होती होंगी? क्या मंदिर उन पंडितों की जागीर है?
जानती हूँ लिखने से कुछ भी नहीं बदलेगा. वो बदतमीज़ी करते रहेंगे. बिहार है वहाँ रंगदारी ही चलती है और चलती रहेगी मगर फिर भी लिख रही हूँ, इस उम्मीद से कि भविष्य में कोई इन पंडितों को सबक़ सीखाए.
शायद तब देवी के चहरे पर मुस्कान आए के साथ उन औरतों के अपमान का भी बदला पूरा हो.
P.S. नीचे मंदिर की तस्वीर के साथ उस पंडित की तस्वीर लगा रही. देखिए पंडित के शक्ल वाले इस गुंडे को जिसे न तो बोलने की तमीज़ है और नहीं इंसान होने के लक्षण.
Courtesy : Anu Roy