मुजफ्फरपुर नगर निगम में हुए गार्बेज टिपर (कूड़ा उठाने वाला छोटा ट्रक) खरीद घोटाले में निगरानी ने पूर्व नगर आयुक्त रमेश प्रसाद रंजन पर मुकदमा दर्ज कर लिया है। शासन की सिफारिश पर निगरानी अन्वेषण ब्यूरो के पुलिस अधीक्षक सुबोध कुमार विश्वास को गार्बेज टिपर खरीद में बरती गई अनियमितता की जांच सौंपी गई थी। जांच में तिरहुत ऑटो मोबाइल, माड़ीपुर के प्रतिनिधि संजय कुमार गोयनका द्वारा नगर निगम में हुई धांधली संबंधित शिकायत की पुष्टि हुई है। इसी आधार पर निगरानी ने मुकदमा दर्ज किया है।

निगरानी की जांच में मौर्या मोटर्स और नगर निगम के तत्कालीन आला अधिकारियों द्वारा गार्बेज टिपर की खरीद में भ्रष्टाचार किए जाने के प्रमाण मिले हैं। इस आधार पर गैर जमानती सं™ोय अपराध की धारा 409, आजीवन जेल या 10 वर्ष की जेल और आर्थिक दंड की धारा 467, गैर जमानती सं™ोय अपराध एवं आर्थिक दंड की धारा 468 के अलावा 471, 120 बी समेत आधा दर्जन धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है।

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भ्रष्टाचार के आधा दर्जन से अधिक हैं आरोप, विभागीय जांच में करोड़ों की हेराफेरी उजागर

वर्तमान में समाज कल्याण विभाग में अपर सचिव के पद पर कार्यरत हैं रमेश प्रसाद रंजन

इन पर होगी विभागीय कार्रवाई

शासन ने पूर्व नगर आयुक्त रमेश प्रसाद रंजन, रंगनाथ चौधरी और बिंदा सिंह के अलावा डूडा के कार्यपालक अभियंता महेंद्र सिंह, सहायक अभियंता नंद किशोर ओझा, मो. कयामुद्दीन अंसारी, जूनियर इंजीनियर प्रमोद कुमार सिंह, और भरत लाल चौधरी के खिलाफ प्रपत्र ‘क’ यानी विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए हैं।

विभाग ने रमेश को हटा दिया नगर आयुक्त पद से

मुजफ्फरपुर नगर निगम के पूर्व नगर आयुक्त रमेश प्रसाद रंजन द्वारा कई योजनाओं में भ्रष्टाचार करने का मामला सामने के बाद शासन ने निगरानी जांच की सिफारिश की थी। यही नहीं, नगर विकास एवं आवास विभाग ने रमेश को नगर आयुक्त पद से हटा दिया था। वे वर्तमान में समाज कल्याण विभाग में अपर सचिव के पद पर कार्यरत हैं। महत्वपूर्ण यह है कि नगर निगम में कार्यरत तत्कालीन सभी इंजीनियर अनियमितता के लिए सीधे तौर पर रमेश को दोषी ठहरा चुके हैं। इंजीनियरों ने पत्र लिखकर शासन को रमेश की मनमानी से अवगत करा दिया है। मुख्य रूप से रमेश पर कूड़ा उठाव के लिए गार्बेज टिपर की खरीद, सबमर्सिबल पंप बोरिंग कराने, संविदा के आधार पर कर्मियों की नियुक्ति में कायदे-कानून की अनदेखी कर करोड़ों रुपये घपले करने की विभागीय जांच में पुष्टि हुई थी। ऐसे में नगर विकास एवं आवास विभाग ने पूरे मामले की गंभीरता को समझते हुए निगरानी जांच की सिफारिश की थी। जांच के क्रम में टेंडर में वर्णित गुणवत्ता के अनुकूल ऑटो टिपर के नहीं होने और अधिक कीमत पर खरीदारी किए दिए जाने पुष्टि हुई थी।

Input : Dainik Jagran

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