मुजफ्फरपुर आई हॉस्पीटल में 12 गरीबों के आंख निकालने और दर्जनों को अंधा बना देने का मामला फंडिंग के लिए लालच का नतीजा है। हॉस्पाटल में आई कैंप में निजी अस्पताल गरीबों की आंख से खिलवाड़ कर रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग की अंधापन निवारण योजना के तहत निजी अस्पताल कैंप लगाकर धड़ाधड़ आंख का ऑपरेशन करते हैं। निजी अस्पताल को एक मरीज के ऑपरेशन पर चार हजार रुपये मिलते हैं। इन्हीं पैसों की लालच में निजी अस्पताल आंखों के ऑपरेशन में संख्या और मानकों की धज्जियां उड़ाते हैं। इन कैंप में न तो विशेषज्ञ डॉक्टर लाये जाते हैं और न दक्ष तकनीकी कर्मचारी रहते हैं। ऑपरेशन थियेटर भी साफ नहीं किया जाता है।

ऑपरेशन के बाद नहीं किया जाता मरीज का फॉलोअप
निजी अस्पतालों में आंख के ऑपरेशन के बाद मरीज का फॉलोअप भी नहीं किया जाता है। नियम है कि मरीज के ऑपरेशन बाद आठ दिन तक उसकी जानकारी ली जाये और आठ दिन के बाद फिर से मरीज को देखा जाये, लेकिन निजी अस्पताल में होने वाले ऑपरेशन और कैंप में किसी मरीज को दोबारा देखा नहीं जाता है। निजी अस्पतालों के कैंपों में ऑपरेशन कराने वाले मरीजों ने बताया कि ऑपरेशन के बाद उनका हालचाल न तो अस्पताल ने पूछा और ना डॉक्टर ने। तकलीफ होने पर दूसरे डॉक्टर के पास जाना पड़ा।
इन्फेक्शन से गल गयी आंख
स्वास्थ्य विभाग की टीम में शामिल डॉ. मनोज मिश्रा और डॉ. नीतू ने मरीजों को जांच के दौरान देखा। जांच में पाया गया कि इनकी आंखों में कॉर्निया मेल्ट यानी खत्म हो गया है। आंख निकालना ही एक मात्र उपाय है। डॉक्टरों ने बताया कि इंफेक्शन शरीर के दूसरे हिस्सों में नहीं फैले, इसलिए एंटीबायोटिक इंजेक्शन दिया जा रहा है। जांच के दौरान जिन मरीजों को देखा गया, टीम ने उनके नाम, पते और फोन नंबर भी नोट किये। सिविल सर्जन डॉ. विनय कुमार शर्मा ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग की टीम जब जांच के लिए गयी तो अस्पताल प्रबंधन ने सूचना छिपाने की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि जांच रिपोर्ट आने के बाद अस्पताल पर कार्रवाई की जायेगी।
आंख निकालने की नौबत के बाद भी जारी रहा ऑपरेशन
मरीजों की आंखों में गंभीर संक्रमण का मामला सामने आने के बाद भी आई हॉस्पिटल में उसी ऑपरेशन थियेटर में लगातार आंखों का ऑपरेशन जारी रहा। 23 नवंबर से लेकर 27 नवंबर तक अस्पताल में 243 ऑपरेशन हुए। अभी ये मरीज सामने नहीं आये हैं। अस्पताल में 22 नवंबर को 65 ऑपरेशन किये गये थे। हालांकि नियम है कि एक डॉक्टर 12 से अधिक ऑपरेशन नहीं कर सकते हैं। सारे ऑपरेशन एक ही डॉक्टर ने छह घंटे में कर दिये थे। यह डॉक्टर अस्पताल के पैनल में भी नहीं हैं। बाहर से बुलाकर इनसे ऑपरेशन कराया गया था।
सरकारी अस्पतालों में योजना फेल
निजी अस्पताल जहां अंधापन निवारण योजना के पैसे अपनी जेब में भर रहे हैं, वहीं सरकारी अस्पतालों में यह योजना डेढ़ वर्षों से बंद है। योजना में मोतियाबिंद का ऑपरेशन के अलावा गरीबों की आंख जांच और मुफ्त में चश्मा वितरण भी किया जाना है। अस्पतालों के अलावा सरकारी स्कूलों में बच्चों की आंख की जांच की जानी है, लेकिन यह सब बंद है। विभाग का कहना है कि कोरोना के कारण योजना नहीं चल रही थी।
Source: Live Hindustan
(मुजफ्फरपुर नाउ के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)