दुनिया में कुछ लोग ऐसे काम करते हैं जो हमारे समाज में हर कदम कदम पर देखा जा सकता है मगर वो काम समाज में कुछ इस तरह से घुल मिल चुका होता है कि एक गर्व के रूप में हम उस देख नहीं पाते। जैसे कहते हैं ना कि बड़े बड़े ज्ञान के ज्ञान होने से पहले अक्षर ज्ञान का ज्ञान होना आवश्यक है। उसी तरह हमारे समाज में बड़ी भूमिका , बड़ी सफलता की बात बाद में की जा सकती है। सबसे पहले जो समस्या होती है वो होती है अपने घर की। और आजादी से पहले की बात करें या आज़ादी के बाद की बात करें या फिर नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के तत्कालीन शासन की बात करें। जो घर घर की समस्या तब से लेकर अभी तक बनी हुई है, वो है ‘शौचालय समस्या’
आजादी से पहले से ही स्वच्छ रहने की, घर में शौचालय बनवाने की बात सरकार देशवासियों को समझा रही हैं। हालांकि यह बात अलग है कि इस समस्या से अबतक पूर्णतः निदान नहीं मिल पाया है। और इस बात को करने के दौरान अगर कोई पॉजिटिव बात सामने आती है तो वह है सुलभ शौचालय।
विंदेश्वरी पाठक जो आज पूरे देश, समाज के लिए मिसाल माने जाते हैं, उनकी इस सुलभ शौचालय की कहानी बड़ी दिलचस्प है। आइए जानते है इनको कहानी को ..
वर्ष 1968 देश गुलामी की जंजीरों से आजाद था। विंदेश्वरी पाठक उस वक़्त ‘बिहार गांधी जन्म शताब्दी समारोह समिति’ में एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहें थे। 1969 में गांधी के जन्म का शताब्दी समारोह होने को था। उस वक़्त हर जगह नीची जाति के लोगों के द्वारा मैला ढोने की बेहद अमानवीय प्रथा थी। वे लोग अपने सर पर दूसरे का मैला ढोते थे। यह बात विंदेश्वरी पाठक के मन को आहत करने लगी। तो उन्होंने 1968 में ही घर दो गड्ढे वाले सुलभ शौचालय की व्यवस्था की। और घर घर जाकर लोगों को ऐसा शौचालय निर्माण करने के लिए प्रेरित करने लगे। शुरुआत में उन्हें काफी मुश्किल अाई। मगर साल दर साल बीतने के बाद लोग इस शौचालय की महत्वता को समझने लगे। इस सुलभ शौचालय के निर्माण के साथ विंदेश्वरी पाठक का सफर शुरू हो गया। तब से लेकर अब देश के कोने कोने में, शहरों में, गांवों में पूरे 15 लाख सुलभ शौचालय बनवाए गए है। वहीं सार्वजनिक क्षेत्रों में 8,500 सुलभ शौचालय का भी निर्माण करवाया गया है।
विंदेश्वरी पाठक कहते हैं कि गांधी के बाद अगर किसी ने सफाई के महत्व को समझा है तो वो है देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी! जिन्होंने देश में सफाई की मुहिम छेड़ रखी है। देश भर में सुलभ शौचालय के निर्माण के कारण खुले में शौच मुक्त समाज के निर्माण में काफी मदद मिली है।
सुलभ शौचालय के कारण ही अब महिलाएं बेफिक्र होकर और आत्मविश्वास के साथ घर से बाहर निकल रही है। बच्चियां अब पहले से ज्यादा स्कूल जाने लगी है। समाज में एक सार्थक बदलाव आया है। विंदेश्वरी पाठक कहते कि अगर आप किसी की मदद कर सकते हैं कुछ भी करके तो आपको उनके मदद के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए। असली इंसान वहीं है जो दूसरे की तकलीफ का हल निकाल सके।
एक बिहारी की सालों की मेहनत ने बिहार की ही नहीं बल्कि पूरे देश की तस्वीर बदल दी। पूरे बिहार की तरफ से विंदेश्वरी पाठक को सलाम।
Via. Ek Bihari Sab Par Bhari