शहर के विकास एवं शहरवासियों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी नगर निगम पर है। लेकिन, वह अपनी जिम्मेदारी निभाने की जगह शहरवासियों के पैसे से मौज कर रहा है। शहरवासी समस्याओं के बोझ से दबे हैं और निगम के जनप्रतिनिधि राजनीति में व्यस्त हैं। जनता को छोड़ राजनीतिक आकाओं को खुश करने में लगे हैं। वहीं, 60 हजार होल्डिंग स्वामी व पांच लाख की आबादी निगम को करोड़ों रुपये टैक्स देकर भी बुनियादी सुविधाओं को तरस रही है।

शहरवासी समस्याओं के बोझ से दबे, नहीं दिया जा रहा ध्यान, निगम के पास शहर के विकास का कोई रोड मैप नहीं

निगम के पास नहीं है शहर के विकास का रोड मैप : शहर की सूरत बदलने का दावा तो नगर निगम करता है, लेकिन उसके पास शहर के विकास का कोई रोड मैप नहीं। एक-एक कर डेढ़ दशक बीत गए। विकास के नाम पर लाखों-करोड़ों नहीं अरबों खर्च कर दिए गए, पर शहर का विकास जहां था, वहीं है। न सड़क सुधरी, न पेयजल संकट और जलजमाव की पीड़ा से मुक्ति मिली। मच्छरों का दंश और आवारा पशुओं का आतंक अलग से। साफ-सफाई के नाम पर निगम के खजाने की सफाई होती रही और विकास के नाम पर बैठकों में विवाद। हां, इस बीच जनता पर लगनेवाला टैक्स जरूर बढ़ गया।

5 लाख की आबादी निगम को करोड़ों रुपये टैक्स देकर भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित

राजनीति का अड्डा बनकर रह गया नगर निगम : नगर निगम विकास का नहीं राजनीति का अड्डा बनकर रह गया है, वह भी निम्न स्तर की राजनीति का। सशक्त स्थाई समिति की बैठक हो या निगम बोर्ड की बैठकों में विकास पर हमेशा विवाद भारी पड़ा। निगम के जनप्रतिनिधि व अधिकारियों के बीच काम की बात नहीं सिर्फ उठा-पटक होती है। कार्यालय के कर्मचारी काम से ज्यादा एक-दूसरे की टांग खींचने में लगे रहते हैं। कार्यालय में कार्य संस्कृति की जगह सेवा संस्कृति ज्यादा हावी है।

कार्यालय के कर्मी काम से ज्यादा एक दूसरे की टांग खींचने में लगे, काम की नहीं उठा-पटक की बात होती कर्मचारियों में 

सुविधा देने में पीछे, टैक्स वसूली में अव्वल : नगर निगम शहरी क्षेत्र स्थित साठ हजार होल्डिंग से प्रतिवर्ष 12 से 15 करोड़ प्रॉपर्टी टैक्स की वसूली करता है। इसके अलावा स्थल से 70-75 लाख, पार्क से 25-30 लाख, विज्ञापन शुल्क से 30-35 लाख, मोबाइल टावर लाइसेंस से 75-90 लाख, सौरात से 28-30 लाख, ट्रेड लाइसेंस से 230-35 लाख सालाना वसूली करता है। समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में निगम ने विभिन्न शुल्क के रूप में शहरवासियों से 14 करोड़ रुपये की वसूली की। इसके अलावा सरकार से निगम को हर साल विभिन्न योजनामद में दो से ढाई अरब रुपये प्राप्त होते हैं। टैक्स व शुल्क की वसूली में निगम सक्रिय रहता है, लेकिन जब सुविधा की बात की जाती है तो चुप हो जाता है।

 

इन समस्याओं को ङोल रहे शहरवासी

शहर की अधिकतर सड़कें जर्जर, हिचकोले खा रहे शहरवासी।

आधी आबादी को नहीं मिल रहा पीने का पानी।

जलजमाव की सालाना पीड़ा से शहरवासियों को नहीं मिली मुक्ति।

गंदगी से बजबजा रहे शहर के गली-मोहल्ले।

मच्छरों के आतंक से सो नहीं पा रहे शहरवासी।

आवारा पशुओं की मार से अस्पताल की राह पकड़ रहे राहगीर।

नक्शा पास करवाने के लिए चढ़ावे के साथ लगानी पड़ती है दौड़।

साल भर में भी म्युटेशन हो जाए तो गनीमत।

सरकारी योजनाओं का समय पर नहीं होता कार्यान्वयन।

नक्शा पारित करने को चार सदस्यीय टीम का गठन

मुजफ्फरपुर : अब निगम से नक्शा पास कराने के लिए आवेदकों को लंबी दौड़ नहीं लगानी पड़ेगी। जांच में सही पाए जाने पर नगर निगम जमा नक्शा को एक माह के अंदर पास कर देगा। वहीं, कोई भी नक्शा बगैर जांच के पारित नहीं किया जाएगा। नक्शा बिल्डिंग बाइलॉज के नियमों के तहत बना होगा, तभी निगम उसे पारित करेगा। इसकी जांच के लिए नगर आयुक्त ने कार्यपालक अभियंता बिंदा सिंह की अध्यक्षता में चार सदस्यीय टीम का गठन किया है। कमेटी में कार्यपालक अभियंता बिंदा सिंह को अध्यक्ष, सहायक अभियंता नंदकिशोर ओझा, कनीय अभियंता मो. क्यामुद्दीन अंसारी व नक्शा शाखा के सहायक विनय कुमार सिंह को सदस्य के रूप में शामिल किया गया है। कमेटी आर्किटेक्ट या आवेदक द्वारा ऑनलाइन जमा किए गए नक्शे की जांच बिल्डिंग बाइलॉज 2014 के तहत करेगी। जांच के बाद कमेटी अपना प्रतिवेदन नगर आयुक्त को देगी। उसके बाद ही नगर आयुक्त द्वारा उसे पारित किया जाएगा।

नगर निगम राजनीति का अड्डा एवं निगम के जनप्रतिनिधि शहर के राजनीतिक आकाओं का मोहरा बनकर रहे गए हैं। उनसे विकास की उम्मीद करना ही बेकार है। विजय कुमार सिंह, बालूघाट

नगर निगम को सिर्फ टैक्स चाहिए, ताकि निगम का खजाना भर सके। जनता को बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराना, वह अपनी जिम्मेदारी नहीं समझता। जनप्रतिनिधि एवं अधिकारी सब राजनीति में उलङो हैं। धीरज कुमार, अधिवक्ता

 

Input : Dainik Jagran

 

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