शहरवासी मच्छरों का प्रकोप ङोल रहे हैं। उनका जीना मुहाल हो रहा है। हालात यह है कि मच्छरों के आतंक से लोग दिन में भी मच्छरदानी का प्रयोग कर रहे हैं। जी हां, निगम क्षेत्र के 60 हजार मकानों में रहनेवाले 5 लाख लोग अब रात ही नहीं, दिन में भी उनका दंश ङोल रहे हैं। वे मलेरिया, कालाजार, डेंगू, जापानी इंसेफेलाइटिस जैसे रोगों के शिकार हो रहे हैं।

मच्छरों पर नियंत्रण की जिम्मेदारी नगर निगम की है। लेकिन, वह भी मच्छरों के आगे नतमस्तक है। वहीं, अधिकारी मच्छर की जगह मक्खी मार रहे हैं।

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जिला प्रशासन व नगर निगम बेपरवाह : मच्छरों पर नियंत्रण की जिम्मेदारी नगर निगम की है। लेकिन, वह भी मच्छरों के आगे नतमस्तक है। वहीं, अधिकारी मच्छर की जगह मक्खी मार रहे हैं।

पार्षदों ने की थी मच्छर से मुक्ति दिलाने की घोषणा : निकाय चुनाव के समय वार्ड पार्षदों ने अपने एजेंडा में शहर को मच्छर से मुक्ति दिलाने की घोषणा सबसे ऊपर रखी थी। लेकिन, पार्षद बनने के बाद एक मच्छर भी नहीं मार सके।

एजेंडे में नहीं शामिल किया प्रस्ताव : नगर निगम सशक्त स्थाई समिति की बैठक हो या फिर निगम बोर्ड की उसके एजेंडे में मच्छर से मुक्ति दिलाने का प्रस्ताव कभी शामिल नहीं हुआ और नहीं किसी ने बैठक में इसपर चर्चा की।

बिना बजट खर्च कर दिए लाखों रुपये : निगम के बजट में भी मच्छरों से मुक्ति अभियान को लेकर कोई प्रावधान नहीं किया गया है। हां, बिना बजट पिछले दो दशक में मच्छरों को मारने वाले उपकरणों की खरीद और उसके चलाने के नाम पर लाखों रुपये जरूर खर्च कर दिए गए।

मच्छर खून व फॉंिगंग मशीन पी रही तेल : पांच साल में पहली बार शहर के सभी वाडरे में फॉगिंग कराई गई, लेकिन अभियान महज खानापूरी ही साबित हुआ। मच्छर मरे या नहीं अभियान के नाम पर तीन हजार लीटर डीजल व पेट्रोल फॉगिंग मशीन जरूर पी गई। इसमें हजारों रुपये की दवा भी धुआं बनाकर उड़ा दी गई, लेकिन मच्छरों का प्रकोप घटने की जगह और बढ़ गया। लोगों का कहना है कि एक वार्ड में एक दिन दो घंटे के लिए फॉगिंग कराई गई, जो कुछ गलियों तक सीमित रही। अधिकांश मोहल्ले इससे वंचित रह गए।

शहर की चार सरकार, मच्छर उन्मूलन अभियान दरकिनार 

वर्ष 2002 से अब तक नगर निगम में चार सरकारों का कब्जा रहा। पहले समीर कुमार, विमला देवी तुलस्यान एवं वर्षा सिंह और अब सुरेश कुमार महापौर की कुर्सी पर बैठे। इस दौरान तीन आइएएस समेत दो दर्जन अधिकारियों में मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी की कुर्सी संभाली। लेकिन, कोई भी एक मच्छर नहीं मार सका। सभी ने मच्छर उन्मूलन अभियान को दरकिनार किया।

अभियान चलाया गया है। आगे भी इसके लिए प्रयास होगा। निजी संस्था को अभियान का जिम्मा देने पर विचार चल रहा है। शहरवासियों को इस पीड़ा से मुक्ति जरूर दिलाई जाएगी। सुरेश कुमार, महापौर

निगम बोर्ड के गठन के बाद जो हालात हैं उनमें काम करना मुश्किल है। लगातार विकास की बात को लेकर लड़ रहे हैं। जिनको काम करना है वह राजनीति में फंसे हुए हैं। इसके लिए आवाज उठाएंगे। मानमर्दन शुक्ला, उपमहापौर 

भूल गए वादा, जनप्रतिनिधियों को नहीं काटते मच्छर

मच्छर सिर्फ शहरवासियों को काटते हैं जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों को नहीं। यदि जनप्रतिनिधियों को काटते तो जनता से किए गए अपने वादे को नहीं भूलते। यह सवाल शहरवासियों का है। संजय कुमार गुप्ता कहते हैं कि लोकसभा हो या विधानसभा या फिर नगर निगम का चुनाव मच्छरों के दंश से मुक्ति दिलाने का वादा कर सांसद, विधायक व पार्षद चुनकर आते हैं। लेकिन, कुर्सी मिलते ही वे अपना वादा भूल जाते हैं। जनता को स्मार्ट सिटी एवं स्मार्ट सुविधा का सपना दिखा रहे जनप्रतिनिधियों ने कभी भी मच्छरों के दंश से पीड़ित शहरवासियों को राहत दिलाना जरूरी नहीं समझा।

Input : Dainik Jagran

 

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