जर्दालु आम, कतरनी धान और मगही पान के लिए जीआइ टैग (भौगोलिक संकेतक) प्राप्त करने के बाद राज्य सरकार की रफ्तार बढ़ गई है। अब मखाना को ब्रांड बिहार बनाने की तैयारी है। इसका जीआइ टैग लेने की कोशिश की जा रही है।

कृषि उत्पादन आयुक्त सुनिल कुमार सिंह मिथिला की खास उपज मखाना और हाजीपुर के चीनिया केले को बिहारी पहचान दिलाने के लिए आगे बढऩे का निर्देश दे चुके हैं। इसके पहले मुजफ्फरपुर की शाही लीची के लिए भी आवेदन किया जा चुका है।

20 अप्रैल को पूर्णिया के कृषि कालेज में आसपास के जिलों के मखाना किसानों एवं कृषि वैज्ञानिकों की संयुक्त बैठक में मिथिलांचल मखाना उत्पादक संघ बनाकर पंजीयन कराने की सहमति बनी है। सोसायटी से 21 किसानों को जोड़ा गया है। पंजीयन हासिल करने के बाद जीआइ टैग के लिए आवेदन अगले महीने तक किया जाएगा। अभी जरूरी दस्तावेज जुटाने का काम किया जा रहा है।

कृषि वैज्ञानिक डॉ.अनिल कुमार के मुताबिक देश में मखाना के कुल उत्पादन का 80 फीसद से ज्यादा बिहार में होता है। उत्तर बिहार के कई जिले को मखाने की खेती के लिए जाना जाता है। देश में कुल 20 हजार हेक्टेयर में मखाना की खेती होती है। इसमें 15 हजार हेक्टेयर सिर्फ बिहार में है।

इसकी मांग देश के अन्य राज्यों और विदेशों में भी काफी है। इसका उत्पादन तालाबों और सरोवरों में होता है। मिथिलांचल के जिलों में मखाने की खेती प्रारंभिक काल से ही होती आ रही है। इसे बाहर से नहीं लाया गया है।

मिथिलांचल की पहचान है मखाना 

कृषि वैज्ञानिक डॉ. अनिल कुमार के मुताबिक दरभंगा और मधुबनी जिले में मखाना की खेती का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीनता का प्रमाण इकट्ठा किया जा रहा है। इसके लिए दस्तावेज तलाशने पड़ेंगे। शादी की पारंपरिक विधियों में भी मखाना शामिल है। यहां से मखाना यूएसए, जापान, कनाडा, हांगकांग एवं अरब देशों में भी निर्यात होता है।

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बिहार को अबतक 11 जीआइ टैग 

बिहार को अबतक जर्दालु आम, कतरनी धान, मगही पान, मधुबनी पेंटिंग, भागलपुरी सिल्क, एप्लीक (कटवा), सिक्की (ग्रास प्रोडक्ट ऑफ बिहार) एवं सुजनी समेत 11 सामग्र्रियों पर जीआइ टैग मिल चुका है। हालांकि कई राज्य हमसे आगे हैं। कर्नाटक को 40 जीआइ टैग मिल चुके हैं। बिहार में ऐसी कई चीजें और उत्पाद हैं, जिनके जीआइ टैग के लिए कोशिश की जा सकती है।

Input : Dainik Jagran

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