– हम दबे-कुचलें हैं इसलिए हम सड़कों पर उतरे हैं.
– हमारा हक़ मारा जा रहा है, इसलिए हम तुम्हें मार देंगे.
– ये ट्रेन, बसें और दूकानें इन सबने मिल कर हमें सालों से दबाये रखा है इसलिए हम सबको फूँक देंगे.

हाँ, मैंने आंदोलन के नाम पर जो देखा है वही कह रही हूँ. आप आंदोलनकारी हैं मगर आपके चेहरे पर आंदोलन वाला कोई भाव मुझे नहीं दिखता जब आप टीवी पर दिख रहे होते हो. आप कैमरे पर आ कर ख़ुश हो रहे होते हो क्यूँकि आपको भी पता है कि आप ज़िंदगी में इससे बेहतर कुछ भी नहीं कर पाओगे जो लोगों के सामने आ सको, इसलिए ये गुंडागर्दी करके ही नज़र में तो कम से कम आ रहे हो.

क्या आपको सच में पता है कि आप किस चीज़ के विद्रोह में यूँ सड़कों पर आगजनी, पत्थरबाज़ी कर रहे हो? ये आंदोलन किस बात के विरोध में हो रहा है किसी से पूछा है, जो नहीं पता है तो? बस किसी नेता ने आवाह्न किया और भेड़-बकरी की तरह झुण्ड बना कर उतर आये सड़को पर. बसों में आग लगा दिया, दुकानें फूंक डाली, ट्रेन रोके रखा इससे लक्ष्य की प्राप्ति हो गयी?

कभी देखा है इन चीज़ों से किसी नेता या बड़े आदमी का नुकसान होते हुए? नहीं, नुकसान आप जैसे, हम जैसे आम नागरिकों का ही होता है. क्या विरोध प्रदर्शन का यही तरीका है? और उससे भी पहले जरूरी यह है कि आप जान लो कि, आख़िर मुद्दा क्या है?

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ये जो आज आप कहते फिर रहे हो कि, “सरकार आरक्षण बंद कर रही है. सरकार दलित विरोधी है.” तो सबसे पहले आपको ये जानने की जरुरत है कि,

सरकार आरक्षण बंद नहीं कर रही महज़ SCST एक्ट में एक संसोधन करना चाह रही है. जिसके तहत अगर कोई पिछड़ी जाति का इंसान अगर किसी के ख़िलाफ़ कोई शिकायत करेगा तो बिना किसी जाँच के उसकी गिरफ़्तारी नहीं होगी. जबकि पहले एक ऐसा कानून पास कर दिया गया था, जिसमें अगर कोई पिछड़े वर्ग का व्यक्ति शिकायत कर देता तो जाँच बाद में होती, गिरफ्तारी पहले हो जाती.

जरा आप ख़ुद सोचिये कि क्या इस कानून का दुरूपयोग नहीं हुआ होगा? बिलकुल उसी तर्ज़ ओर हुआ होगा कि जैसे किसी ने दहेज़ का आरोप लगाया और पूरा ससुराल पक्ष जेल के अंदर. क्या हर केस में ससुराल पक्ष दोषी ही रहा होगा? तो जैसे दहेज़ विरोधी कानून में बदलाव हुए हैं, वैसा ही हल्का बदलाव यहाँ किया जा रहा है, तो इसमें इतना हो-हल्ला क्यों?

ये जो आप बिना जाने-समझें सड़कों पर उतर रहें हैं अपनी जाति के नेताओं की आवाज़ सुन कर, यकीन मानिये आप उनके लिए सिर्फ़ सीढ़ी भर हो. आपका इससे कुछ भी भला नहीं होने वाला. हाँ उनका भला जरूर होगा. उन्हें आने वाले चुनाव में कोई पार्टी टिकट दे देगी और वो कुर्सी पर जा बैठेंगे. फिर तू कौन और मैं कौन होगा!

आप समझिये यूँ अपना वक़्त मत जाया कीजिये. इस आरक्षण से किसी का भला नहीं होने वाला. हाँ, ये जरूर होगा कि जाति की जो खाई है वो और गहरी ही होती जाएगी और राजनितिक पार्टियां अपने भले के लिए आपका यूँ ही इस्तेमाल करती रहेंगी. आप आज भी भीड़ का हिस्सा हैं कल भी भीड़ का ही हिस्सा रहेंगे. वक़्त है जो आपके हाथ में तो पढ़िए, सोचने समझने की ताक़त बढ़ाइए.

अब आप उतने भी दबे-कुचले नहीं रहें। मैंने देखा है अपने गाँव में आपलोगों के भी छतदार मकान हैं. आपके बच्चे भी अच्छी जगहों पर पढ़ रहे हैं तो इतना हाय-तौबा क्यों? ऊपर से ये सरकार आपको तमाम तरह की सुविधाएँ दे रही है जिससे आप मेन-स्ट्रीम में शामिल हो सकें. आंगनबाड़ी से ले कर स्कूल तक में खाने की सुविधा, किताब-कॉपी मुहैय्या करवाना, साईकिल दिलवाना तो वही नरेगा और जनधन योजना से आपको आर्थिक मदद पहुंचाई जा रही है न? तो थोड़ी बौद्धिकता आप भी दिखाइए. क्यों मानसिक दीवालियेपन को यूँ ज़ाहिर कर रहे हैं कुछ नेताओं और मिडिया के बहकावे में आ कर, हाँ?

 

नोटः ऐ लेखक का अपना निजी विचार है। मुज़फ़्फ़रपुर नाउ अपना विचार रखने की आजादी हर किसी को देती है।
आप भी अपना विचार कमेंट बॉक्स में दे सकते है।

 

 

 

 

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