भारत बंद आंदोलन पर एक समीक्षात्मक आलेख।
क्या सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार गिराना चाहती है?
क्या मोदी सरकार आरक्षण विरोधी है?
आपको तो ऐ पता हीं होगा की जब बिहार में विधानसभा का चुनाव हुआ था और ऐन वक्त पर RSS के मोहन भागवत ने आरक्षण पर समीक्षा की बात कर दी थी,जिससे मोदी लहर के बावजूद भी बीजेपी को कितना खामियाजा भुगतना पड़ा था।
मोहन भागवत के सिर्फ समीक्षा वाले बयान को विपक्षी पार्टियों ने उसे आरक्षण विरोधी बयांन बनाकर एक अच्छा जनसमर्थन बना लिया था और बीजेपी वहाँ चुनाव जीतते जीतते भी हार गई थी।
विपक्षी को बैठे बैठे ही एक भावनात्मक मुद्दा मिला गया और उसने पिछड़े दलितों को समझाकर अपनी ओर कर लिया।
जबकि ऐसा कुछ हुआ भी नहीं।
इससे आप अच्छी तरह समझ गए होंगे की बिहार और यूपी जैसे हिंदी भाषी क्षेत्रो में जातिवाद आरक्षण कितना संवेदनशील मुद्दा है और यह किस तरह लोगो के भावना के साथ जुड़ा है।
मगर अब फिर ऐसा लगने लगा है कि मोहन भावगत वाला कार्य सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया है।
अब यह देखना है कि कही सुप्रीम कोर्ट का यह पहल मोदी सरकार को फिर से महंगा न पड़ जाए और बिहार की तरह पुरे देश में इसकी सजा न भुगतनी पर जाए।
ऐसा क्या हुआ की 2019 चुनाव के नजदीक आते ही सुप्रीम कोर्ट ने इस संवेदनशील मुद्दे पर कानून में संसोधन का विचार रख दिया।
जब की सुप्रीम कोर्ट भी अच्छी तरह जानती है कि इस तरह के कानून में संसोधन करना अब आसान कार्य नही है।
अगर आप आज के भारत बंद के आंदोलन को नजदीक से देखे तो पता चलेगा कि बहुत सारे लोग जो इस आन्दोलन में शामिल है।
इस बात को लेकर उनमें काफी असमंजस सी स्थिति बनी हुई है कि ओ किसके खिलाफ आंदोलन कर रहे है।
सरकार या सुप्रीम कोर्ट।
जैसा की आपको भी पता होगा की यह संसोधन की बात सुप्रीम कोर्ट ने की है और इसके खिलाफ में सरकार ने भी आंदोलन के पहले ही याचिका भी दाखिल कर दी है।
फिर भी अगर आप आज आंदोलन को करीब से देखे तो हर जगह सत्ता पक्ष और मोदी के विरोध में नारे लागए जा रहे थे।
सरकार पर जमकर हमला किया जा रहा था।
ऐसे तो लोगो में पहले से भी काफी यह प्रचारित है कि बीजेपी सरकार दलित और आरक्षण विरोधी सरकार है।
मगर सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश ने विपक्षियों को लोगो में यह समझाने के लिए की बीजेपी दलित और आरक्षण विरोधी सरकार है इसके लिए और ताकत दे दी है।
आप अगर आंदोलन में शामिल लोगो से बात करे तो ज्यादातर लोगो का यही कहना है कि मोदी सरकार आरक्षण खत्म कर रही है। और यह ब्राह्मनवाद समर्थित सरकार है।
यह दलितों का हक़ छिनने वाली सरकार है।
आंदोलन में साफ साफ बृह्मानवाद के खिलाफ नारे लागए जा रहे थे,और जय भीम का नारा चारो तरफ गूंज रहा था।
अब यह देखना बहुत दिलचस्प होगा की इस आंदोलन से लोगो को कितना फायदा होता है ,लेकिन इतना तो जरूर है कि इस आंदोलन की भीड़ ने यह साबित कर दिया है कि आगे आने वाले चुनाव में मोदी के लिए चुनाव जीतना आसान बात नही होगी।
और कहीं न कही विपक्षियों को सुप्रीम कोर्ट ने बैठे बैठे एक खास जनसमर्थन का तोहफा दे दिया है।
और दलितों का एक खास वोट बैंक मोदी विरोध में आ गया है।
आगे यह भी देखना है दिलचस्प होगा कि इस भ्रामक प्रचार से मोदी और बीजेपी किस तरह अपने आप को बचा पायेगी और इस बहुल समर्थन वर्ग को अपने वोट बैंक के रूप में सुरक्षित रख पाएगी।
युवा पत्रकार संत राज़ बिहारी की कलम से।