महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने लोक आस्था के महापर्व छठ व्रतियों और श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए मुंबई में सरकार के स्तर पर छठ कमेटी गठित करने का एलान किया है। फडणवीस ने कहा कि हम चाहते हैं कि छठ पूजा में श्रद्धालुओं को किसी तरह की परेशानी ना हो। उन्होंने बिहार से कैंसर का इलाज कराने मुंबई जाने वाले बिहारियों के रहने के लिए विशेष भवन की व्यवस्था करने का भी भरोसा दिया।

ऐसी थी मुंबई की पहली छठ पूजा : फिल्म व संगीत सितारों की मौजूदगी, ताम-झाम, बड़े नाम, आलीशान मंच और लंबा-चौड़ा खर्च। मुंबई की मौजूदा सार्वजनिक छठ पूजा की शुरुआती छठपूजा से कोई तुलना नहीं की जा सकती। कैसा था महानगर में बसे बिहार, झारखंड और उत्तर भारत के लाखों प्रवासियों का पहला सार्वजनिक छठ? समाज के अग्रणियों से बातचीत कर विमल मिश्र ने इसकी टोह ली।

आज से 25 साल पहले तक मुंबई में छठ पर्व का वैसा रूप नहीं था जैसा आज है। छठ के दिन संध्या के अस्ताचलगामी और अगली सुबह के उदीयमान सूर्य के दर्शन-पूजन करने आए कुछ बिहारी परिवार जरूर जुहू बीच पर पूजा करने आया करते। जुहू की रेत पर उन दिनों लाइटिंग, पानी, महिलाओं के कपड़े बदलने, सुरक्षा और रात बिताने की कोई व्यवस्था नहीं थी। रात के घुप्प अंधेरे में असामाजिक तत्वों के आतंक से जी कांपता। मुंबई छठ उत्सव महासंघ के अध्यक्ष मोहन मिश्र को 1993 की छठ पूजा याद हो आई, जब बिहार से आई 80 वर्षीय मां सुमित्रा देवी की धर्मनिष्ठा ने उन्हें सार्वजनिक पूजा के लिए कुछ न्यूनतम इंतजाम के जुगाड़ के लिए बाध्य कर दिया।

मोहन मिश्र बताते हैं, ‘मुंबई में बिहारी समाज के प्रमुख कहे जाने वाले सूर्य नारायण मिश्र, दिवाकर झा, उमाकांत मिश्र, विनय कुमार झा, उचित नारायण झा, अनिल कर्ण, उदयकांत झा, नीलांबर, कृष्ण कुमार झा, आदि के परामर्श कर तय हुआ कि इस बार छठ व्यवस्थित ढंग से मनाना है। पर, यह हो कैसे? रास्ते की बाधाएं अपार थीं। जुहू पर फेरीवालों और घोड़े व ऊंट पर सैर कराने वालों का बोलबाला था। पास में हेलिकॉप्टरों की उड़ान व लैंडिंग का अड्डा जुहू एयरोड्रम। पुलिस ने एयरोड्रम से ‘पवन हंस’ की परमिशन लाए बगैर कुछ भी करने से इनकार कर दिया। रामदास नायक, विधायक अभिराम सिंह, नगरसेवक सुंदर अन्ना शेट्टी, आदि राजनीतिज्ञों ने मदद का हाथ बढ़ाया, पर छठ के स्नान, अन्य धार्मिक विधियों व बिजली के इंतजाम के लिए खंभा गाड़ने नहीं दिया गया। इस संघर्ष की परिणति हुई हम चार-पांच लोगों की गिर‌फ्तारी से।’ छठ व्रतियों के जोश के आगे आखिरकार, प्रशासन को हार माननी पड़ीं। इंतजाम को कोशिश में लगे बिहारी युवकों ने 20 बाई 20 का एक घेरा बनाया और पाव-भाजी व नारियल पानी बेचने वाले से खंभे और पेट्रोमैक्स भाड़े पर लेकर त्योहार मनाने का कामचलाऊ इंतजाम कर लिया। व्यवस्था देख सूर्य पूजने जुहू आए कोई 60 बिहारी परिवार झट वहां चले आए। चाय-पानी से उनकी आवभगत की गई।

ताम-झाम, बड़े नामों और फिल्मी सितारों की मौजूदगी, पटाखेबाजी, नशाखोरी, साफ-सफाई की कमियां-आज के छठ आयोजन की कोई बाध्यता उन दिनों नहीं थी। मुंबई में छठ के पहले सार्वजनिक कार्यक्रमों की सबसे बड़ी खासियत होती थी थी सादगी और सात्विकता। आज जब छठ का आयोजन राजनीतिक हो गया है और उनका खर्च लाखों को छू रहा है 23 साल पहले इस आयोजन का खर्च बैठा था महज सात हजार रुपये। ‘मुंबई की सार्वजनिक छठ पूजा कोई आज की देन नहीं है। 1950 के दशक में उदय भानु सिंह, तिलकधारी झा, उमाकांत मिश्र, भगवद झा, आद‌ि बिहार के तत्कालीन मान्यवरों ने जुहू की रेत पर इकट्ठा होकर इसकी शुरुआत की थी, बिहार असोसिएशन के पदाधिकारी यू.के.सिंह मुंबई की सार्वजनिक छठ की जानकारियों में इजाफा करते हैं। कुछ अन्य प्रमुख बिहारीजन के पास इससे भी पुरानी सार्वजनिक छठ पूजाओं की यादें हैं।

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‘छठ नियम, निष्ठा, स्वच्छता और तन-मन की पवित्रता का पर्व है’, जुहू के आयोजन में छठव्रतियों के लिए सुविधाओं के इंतजाम में सहयोग करने वाले महाराष्ट्र में बिहार के पुराने और सबसे प्रतिष्ठित संगठन बिहार असोस‌िएशन के अध्यक्ष बी.एन.सिंह ने बताया। बिहार से संबंध रखने वाले देश कई बड़े नेता राजनेता और मंत्री, आद‌ि छठ पर उनके और पूर्व अध्यक्ष संप्रदा सिंह के आतिथ्य का आनंद उठा चुके हैं।

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