शिक्षक दिवस 5 सितम्बर के एक दिन पहले बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम सह वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी को लेटर लिखा है. लेटर में बिहार के शिक्षक संघों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में लड़ी जा रही लड़ाई का जिक्र किया गया है. सवाल किया गया है कि जब 5 सितम्बर के दिन बिहार सरकार शिक्षकों को सम्मानित कर रही होगी, उसी वक़्त कैसे बिहार सरकार के ही वकील सुप्रीम कोर्ट में शिक्षकों के समान काम के बदले समान काम वेतन मामले का विरोध कर रहे होंगे. लेटर माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने लिखा है. आगे इस लेटर को शब्दशः प्रस्तुत किया गया है.

प्रिय नीतीश जी,
“वंदौ गुरूपद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि,
महामोह तप पुंज जासु वचन रवि कर निकर“
– तुलसीदास
5 सितम्बर 2018, समय 11 बजे, स्थान कृष्ण मेमोरियल हाॅल, पटना में आप शिक्षक दिवस समारोह के मुख्य अतिथि हैं और आपके उपमुख्यमंत्री एवं वित्त मंत्री विशिष्ट अतिथि हैं. जो कहा करते थे कि जब सरकार में आयेंगे तब शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन देंगे. अब तो वे मौनी बाबा हो गये हैं. आप जब शिक्षकों का तथाकथित सम्मान करेंगे, ठीक उसी समय आपके ही भारत के महान्यायवादी पटना उच्च न्यायालय के द्वारा बिहार के प्राथमिक से +2 के शिक्षकों को दिया गया सम्मान छीनने के लिए अपनी बौद्विक, संवैधानिक एवं प्रशासनिक क्षमता की तलवार भांजेंगे. इस सम्मान संघर्ष के 18 वें दिन उच्चतम न्यायालय के कुरूक्षेत्र में शिक्षकों की पांडवी सेना को पराजित करने के तर्क तीर का संधान करेंगे. गीता के द्वितीय अध्याय में कहा गया है कि-
“ गुरूनहत्वा हि महानुभावान्
श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके.
हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव
भुंजीय भोगान्रुधिरप्रदिग्धान्.. 5..
बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ द्वारा लिखा गया लेटर
अर्थात ऐसे महापुरूषों को जो मेरे गुरु हैं, उन्हें मारकर जीने की अपेक्षा इस संसार में भीख मांगकर खाना अच्छा है. भले ही वे सांसारिक लाभ के इच्छुक हों, किन्तु हैं तो गुरुजन ही यदि उनका वध होता है तो हमारे द्वारा भोग्य प्रत्येक वस्तु उनके रक्त से सनी होगी. क्या आपके मन मिजाज में झनझनाहट होगी? लेकिन शिक्षकों की पांडवी सेना पराजित नहीं होगी. न्याय का अंतिम द्वार उच्चतम न्यायालय ही है. शिक्षकों के अपमान की पीड़ा आपको भी इसलिए होगी कि अभी-अभी आपने अपने शिक्षक ससुर कृष्ण नन्दन बाबू को श्रद्वांजलि दी है. वे बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के ही सदस्य थे. भले ही श्रद्वा के दो फूल चढ़ाने का मौका आपने नहीं दिया. स्व. चन्देश्वर बाबू, रामयतन बाबू, इन्द्रशेखर मिश्र जी ने उनसे मेरा परिचय कराया था. यदि आपको आत्मा परमात्मा में विश्वास है तो सच्ची और सार्थक श्रद्धांजलि के लिए उच्चतम न्यायालय में दायर विशेष अनुमति याचिका ससम्मान वापस कर लें, अन्यथा यह कलंक अमिट रहेगा. आपको सालता रहेगा.
गुरू ब्रह्ना, विष्णु, महेश्वर हैं, इनको आध्यात्मिक और न्यायिक सम्मान से वंचित करने के लिए जनता के पसीने की गाढ़ी कमाई का निरर्थक और निष्फल दुरूपयोग आप उच्चतम न्यायालय में लगातार कर रहे हैं. सरकारी और गैर सरकारी अधिवक्ताओं की लंबी फौज आपने खड़ी कर दी है. महीनों से शिक्षा विभाग के सारे कार्य ठप्प हैं. सिर्फ निरीक्षण की नौटंकी जारी है. नेपथ्य में हो रहे कोलाहल की अनुगूंज आपको सुनाई नहीं पड़ती है. झुरमुट की ओट में चहकने वाले पक्षियों के स्वर सर्वदा हर्षगान नहीं हुआ करते हैं. शिक्षकों की आधी रोटी भी छीनकर उन्हें मुकदमेबाज बनाने के गुनाह से आपकी छवि धूमिल हुई है. अल्पवेतनभोगी शिक्षक उस पर भी तुर्रा यह है कि उन्हें छः से आठ महीनों तक अपनी कमाई का हिस्सा नहीं देते हैं.
आप लगातार यह अक्षम्य अपराध कर रहे हैं. लेकिन सम्मान की रक्षा के लिए संकल्पित शिक्षक समाज आपके इस हर अपमानजनक प्रताड़ना एवं पीड़ादायक प्रयास को पराजित करेगा. बूढ़ी माँ, बीमार पिता की दवाई अपने दुधमुंहे नौनिहाल बच्चों की पढ़ाई के पैसे काटकर उच्चतम न्यायालय के विद्वान अधिवक्ताओं को उंची फीस अदा कर रहे हैं. चाहे जो भी हो, शिक्षक तो अपना हिस्सा मांगेंगे ही. राष्ट्रीय आय के अन्यायपूर्ण वितरण की विषमता की खाई को पाटना ही होगा. शिक्षक वेतन की समानता लेकर ही रहेंगे. क्या आपकी संवेदना जागेगी? शिक्षक और उनके आश्रित बीस लाख परिवार के सदस्य आपसे पूछेंगे. शिक्षक समाज और पूरा राष्ट्र आपको माफ नहीं करेगा. दिनकर को याद करें-
“पापी कौन मनुज को उसका न्याय चुराने वाला
या न्याय खोजते विघ्न का शीश उड़ानेवाला”
5 सितम्बर को शिक्षा जगत के तवारिख में पहली बार कलंक कथा बिहार के माथे दर्ज रहेगी. वक्त अभी भी है. तुरंत फैसला लें. आपने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में राष्ट्रीय स्तर पर कई सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विरासत संजोने में नया कीर्तिमान स्थापित किया है. लेकिन चंद नौकरशाहों के द्वारा गुमराह हो जाने के कारण सार्वजनिक घोषणा के बावजूद शिक्षकों को सांतवें वेतनमान से वंचित कर दिया. क्या शिक्षक आपके खजाने पर डाका डाल देते. भारत सरकार भी अपनी सारी शक्ति, बल , बुद्धि, छल-प्रपंच के द्वारा आपकी जिद के कारण यह कलंक ओढ़ रही है. जबकि 83 हजार करोड़ शिक्षा सेस की राशि मोदी जी के ही खजाने में जमा है. जिसकी चाबी उन्हीं के पास है. उसका ही उपयोग कर लेंगे तो यह राष्ट्र के विकास के लिए बड़ा शिक्षा निवेश होगा. शिक्षक विजय माल्या और नीरव मोदी नहीं हो सकते हैं. शिक्षक राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करते हैं. देश के अधिकांश भा.ज.पा. शासित राज्यों में समान कार्य के लिए समान वेतन मिल रहा है. तब बिहार के शिक्षकों का क्या गुनाह है. जनता जवाब मांगेगी. शिक्षकों का सम्मान मत छीनिये. यदि 5 सितम्बर को आप चूक गये तो आप गुनाहों के देवता बने रहेंगे. यह कितना अजीब है-
हाकिम की फकीरी पे तरस आती है
जो गरीबों के पसीने की कमाई मांगे
आप अपने आपको कोसते रहेंगे. आज तो 4 सितम्बर है. 5 सितम्बर के पहले यह पत्र आप पढ़ लेंगे. शायद मेरा आपके प्रति यह अंतिम भरोसा कहीं टूट नहीं जाय यह ख्याल रखेंगे. बस इतना ही विशेष मिलने पर.
शत्रुघ्न प्रसाद सिंह
पूर्व सांसद
सेवा में,
नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री
सुशील मोदी, उपमुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री
बिहार सरकार
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