तबलीगी जमात केस में दिल्ली पुलिस को कोर्ट ने लताड़ा, सभी विदेशी बाइज्जत बरी
कोरोनावायरस महामारी की शुरुआत में ही इसके प्रसार के पीछे जिम्मेदार ठहराए जा रहे तब्लीगी जमात मरकज में शामिल हुए 14 देशों के सभी 36 विदेशियों को आखिरकार दिल्ली की कोर्ट ने बरी कर दिया। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को लताड़ लगाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष निजामुद्दीन स्थित मरकज परिसर में किसी भी आरोपी की मौजूदगी साबित करने में नाकाम रहा। कोर्ट ने साथ ही गवाहों के बयान में विरोधाभासों का मुद्दा भी उठाया।
बता दें कि मार्च में दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में तब्लीगी जमात से जुड़े लोगों का मरकज हुआ था। इसमें विदेश से आए मुस्लिम भी बड़ी संख्या में शामिल हुए थे। हालांकि, कुछ लोगों के कोरोनावायरस पॉजिटिव निकलने के बाद दिल्ली पुलिस से लेकर अलग-अलग राज्यों की सरकारों ने आरोप लगाया था कि देश में तब्लीगी के इस कार्यक्रम की वजह से ही देश में संक्रमण तेजी से फैला है।
अदालत ने 24 अगस्त को आईपीसी की धारा 188 (सरकारी सेवक द्वारा लागू आदेश का पालन नहीं करना), 269 (संक्रमण फैलाने के लिए लापरवाही भरा कृत्य करना) और महामारी कानून की धारा तीन (नियमों को नहीं मानना) के तहत विदेशियों के खिलाफ आरोप तय किए थे। आपदा प्रबंधन कानून, 2005 की धारा 51 के तहत भी उनके खिलाफ आरोप तय किए गए थे।
चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अरुण कुमार गर्ग ने इस मामले की सुनवाई करते हुए हजरत निजामुद्दीन के स्टेशन हाउस ऑफिसर (जो कि मामले में शिकायतकर्ता थे) और जांच में शामिल अफसरों को आरोपियों की पहचान न कर पाने के लिए तलब किया। गवाहों के बयानों में विरोधाभास का जिक्र करते हुए अदालत ने कुछ अभियुक्तों द्वारा दलील को स्वीकार किया कि ‘उस अवधि के दौरान उनमें से कोई भी मरकज में मौजूद नहीं था और उन्हें अलग-अलग से उठाया गया था ताकि गृह मंत्रालय के निर्देश पर दुर्भावना से उन पर मुकदमा चलाया जा सके।’
अदालत ने कहा, “यह समझ से परे है कि कैसे IO (इंस्पेक्टर सतीश कुमार) ने 2,343 व्यक्तियों में से 952 विदेशी नागरिकों की पहचान कर ली। एसएचओ के अनुसार ये सभी कोरोनावायरस गाइडलाइंस की धज्जियां उड़ाते हुए पाए गए थे। कोई टेस्ट आइडेंटिटी परेड (TIP) नहीं कराई गई बल्कि गृह मंत्रालय द्वारा दी गई लिस्ट का इस्तेमाल किया गया।”