सरकार ने अपनी पूरी मशीनरी किसानों को देशद्रोही साबित करने में लगा दी है। अक्सर आपका-हमारा ध्यान टीवी मीडिया पर जाता है अख़बारों पर नहीं, लेकिन हिंदुस्तान के गाँव-क़स्बों में हिंदी अख़बारों का जितना प्रभाव है उतना टीवी मीडिया का नहीं। मैं दावे से कह सकता हूँ हिंदी अख़बारों द्वारा फैलाए जाने वाले भ्रम पर आपका ध्यान नहीं गया होगा।
दैनिक जागरण अख़बार हिंदी पट्टी में सबसे अधिक बिकने वाला अख़बार है, लेकिन अक्सर ये अख़बार इस तरह के टाईम पर सरकार के लिए एक शील्ड का काम करता है। आप इस अख़बार की हेडलाइन देखिए, हेडलाइन के बड़े बड़े बोल्ड शब्दों में लिखा है कि किसानों ने “पाकिस्तान ज़िंदाबाद” के नारे लगाए और अंदर महीन-महीन शब्दों में लिख रहा है कि मालूम नहीं नारे लगे हैं कि नहीं, किसान रैली में नारे लगे ही हैं इस बात की पुष्टि नहीं है। एकबार के लिए सोचिए इतने संवेदनशील समय में ऐसी अपुष्ट खबर को हेडलाइन में रखने के पीछे का क्या अर्थ है?
हिंदी के अख़बार, अख़बार कम भारतीय जनता पार्टी की आइटी सेल के द्वारा बनाए गए whatsapp ग्रुप अधिक बन चुके हैं जिनका काम whatsapp पर आने वाली अफ़वाहों को को वैधता देना है। अख़बार की इस हेडलाइन के बाद whatsapp पर फैलाए जाने झूठ पर शक करने के लिए कोई जगह नहीं रहेगी, whatsapp पर भ्रम फैलाने वाला नफ़रती चिंटू अब अख़बार की कटिंग दिखा सकेगा। मासूम जनता इसपर विश्वास भी कर लेगी, क्योंकि अख़बार में लिखा है, उस जनता को अब भी लगता है कि अख़बार में लिखा है तो सच ही लिखा होगा।
हिंदी के अख़बार ख़ासकर दैनिक जागरण सरकार का अंतिम ब्रह्मशस्त्र है, इसके बाद एक और शस्त्र बचता है वह है प्रधानमंत्री का भाषण। जब आइटी सेल के झूठ से काम न चले, टीवी के propaganda से काम न चले तब सरकार प्रधानमंत्री को आगे कर देती है, प्रधानमंत्री आँख में आँख डालकर, चिल्ला चिल्ला कर झूठ बोलते हैं, अंत में आंदोलनरत निर्दोष नागरिकों पर FIR दर्ज कर कर के आंदोलन को कुचल दिया जाता है। भाजपा के पास प्रचारतंत्र ही नहीं है बल्कि एक पुलिसिया तंत्र भी है जो हर आंदोलन को कुचलने का काम करता है।
कठुआ आंदोलन ने सरकार की नाक में नकेल डाल दी थी, अमित मालवीय समेत भाजपा की पूरी मशीनरी ने बच्ची के साथ हुए नृशंस अपराध को भी साम्प्रदायिक बना दिया था। इससे भी काम न चला तो हिंदी पट्टी के अख़बारों को काम पर लगा दिया कि ये साबित किया जाए कि बच्ची के साथ कोई दुष्कर्म ही नहीं हुआ। सरकार और मीडिया का पूरा ज़ोर इसी एक बात पर रहा कि दुष्कर्म ही नहीं हुआ, इस बात पर नहीं रहा कि अपराधियों को सजा मिले। तब इसी अख़बार ने हेडलाइन बनाई थी कि बच्ची के साथ कोई रेप ही नहीं हुआ जबकि पोस्टमार्टम और फ़ोरेंसिक रेपोर्टों से बाद में पता चला कि बच्ची के साथ दुष्कर्म करने के बाद हत्या की गई है।
आप किसी भी सरकार के समर्थक हो सकते हैं, लेकिन इस देश ने आपका क्या बिगाड़ा है कि ऐसी मीडिया छोड़कर जा रहे हैं जो आपकी बेटी के साथ नहीं है, जो किसानों के साथ नहीं है, जो छात्रों और कमज़ोरों के साथ नहीं है। इससे अधिक दुर्भाग्य किसी देश के लिए क्या हो सकता है? एकबार ठंडे बस्ते में बैठकर सोचिए विचारिए कि जिस मुल्क से आप प्यार करते हैं क्या वह ऐसी घटिया मीडिया और ऐसे घटिया नेता डिज़र्व करता है?
-Shyaam meera singh