अमरूद की नयी वीएनआर (वेजीटेबल एंड राइस-बीआइएचआइ) किस्म बिहार में आदिवासी महिला किसानों की किस्मत खोलेगी। बिहार में पहली बार वीएनआर (कंपनी का नाम) बीज से अमरूद का उत्पादन होगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत बांका, कटिहार और किशनगंज के कृषि विज्ञान केंद्र को इसके पौधे उपलब्ध कराए हैं। इनमें 100 पौधे बांका की आदिवासी महिलाओं के लिए हैं। कटिहार और किशनगंज की आदिवासी महिला किसानों के लिए भी 50-50 पौधे भेजे गए हैं। 200 पौधे बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर भेजे गए हैं।
23 गांवों का चयन
पहले चरण में इस काम के लिए बांका में 23 आदिवासी गांवों का चयन किया गया है। पौधे अनिवार्य रूप से आदिवासी महिला किसानों को ही दिए जाने हैं। इसके एक पौधे की कीमत 170 रुपये है। पौधों को लगाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), बांका ने किसानों का चयन कर लिया है। बाद में पहाड़ी इलाके के वनवासी किसानों को भी इसमें जोड़ा जाएगा।
वीएनआर-बीआइएचआइ अमरूद की विशेषता
यह थाइलैंड की प्रजाति है। भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर जगह पूरे साल इसका फलन संभव है। इसका एक फल 300 ग्राम से लेकर 1200 ग्राम तक का हो सकता है। आदिवासी परिवार बेमौसम में इस फल को बेचकर अच्छी आमदनी हासिल कर सकते हैं। खास बात यह है कि यह अमरूद मधुमेह और एसीडिटी की बीमारी से पीडि़त लोगों के लिए भी लाभदायक होगा। वे भी इसका स्वाद ले सकेंगे।
बांका कृषि विज्ञान केंद्र की समन्वयक डॉ. शारदा कुमारी ने बताया कि आदिवासी महिलाओं के उत्थान कार्यक्रम के तहत वीएनआर बीज कंपनी ने इसके बीज तैयार किए हैं। बांका में आदिवासी महिलाओं को इसके पौधे मिलेंगे। इसके लिए गांवों व किसानों का चयन केवीके ने पूरा कर लिया है। अगले सीजन में बांका के बाजार में थाइलैंड का यह अमरूद उपलब्ध होगा।