भोजपुरी में एक से एक चपण्डुक पैदा हो रहे हैं। बिहार में पढ़ाई लिखाई इज़्ज़त सब चौपट है तो क्या पैदा होगा – बॉब मरले? छठ इस गाने के बोल और इसका व्युज़ कुल मिलाकर एक करोड़ चालीस लाख व्युज़ है और अद्भुत बात यह है कि यह गाने खुलेआम बज रहे हैं, आज से नहीं यह खेल पुराना है।

पुराना ज़माना में रात रात भर बाईजी और लौंडा के नाच में भजन थोड़े न सुना जाता था। पहिले भी भरतपुर लुटाता था और नथुनिएं पर गोली खुलेआम मारा जाता था। अश्लीलता और फूहड़ता खुलेआम स्वीकार पहले भी था, अब भी है। अब थोड़ा ज़्यादा है। सुना आजकल लोग ट्विटर पर बायकॉट बायकॉट खेल रहे हैं – खेलिए। लेकिन सत्य यह है कि गुड़ खाकर गुलगुला से परहेज़ करने का मज़ा ही कुछ और है। लेकिन बीमारी का समाजशास्त्र यह है कि अगर उसका समुचित इलाज न हुआ तो धीरे-धीरे बढ़ता ही है और जब बढ़ेगा तो क्या होली और क्या छठ और क्या शादी में बाईजी और लौंडा के नाच, सब बराबर है!

इसे बनाने और देखनेवाले इसी समाज के अंग हैं वो कहीं मंगल ग्रह से नहीं उतरे हैं। सांस्कृतिक पुनर्जागरण नामक एक प्रक्रिया होती है जो दूर दूर तक कहीं दिखाई नहीं देती। न समाज को चिंता है न सरकार को। ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ कोई आंदोलन भी नहीं है, प्रखर रूप से। बाक़ी सोशल मीडिया पर बायकॉट बायकॉट खेलने से समय काटता है और राजनैतिक स्वार्थ पूरा होता है बाकी कुछ नहीं।

गाने का वीडियो नहीं लगा रहा हूं क्योंकि बहुत्ते वाहियात है, जिन्हें देखना है यूट्यूब पर जाके देख सकते हैं। दरबार खुला है, दर्शन चालू है धकाधक। वैसे छठ के घाट पर क्या क्या होता है हम सबको पता है, लिखने से किसी कमज़ोर की भावना आहत हो जाएगा। गाने का बोल देख कीजिए और ऐसे बहुत सारे वीडियो से भरा हुआ है यूट्यूब।

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