सगुल्ला जिस तरह पश्चिम बंगाल का हो गया, उसी तरह मुजफ्फरपुर की शाही लीची को बिहार की पहचान मिल जाएगी। कतरनी चावल, जर्दालु आम और मगही पान के बाद अब शाही लीची के लिए जीआई टैग (भौगोलिक संकेतक) मिलने का बिहार को इंतजार है। बौद्धिक संपदा अधिकार के तहत ज्योग्राफिकल इंडिकेशन जर्नल में शाही लीची पर बिहार की दावेदारी का प्रकाशन जून के अंक में होने वाला है। प्रकाशन के तीन महीने तक बिहार के दावे को पब्लिक डोमेन में रखा जाएगा। इस दौरान अगर किसी राज्य या क्षेत्र ने आपत्ति नहीं जताई तो शाही लीची को बिहार का नाम मिल जाएगा।

पिछले सप्ताह बिहार ने अपने तीन उत्पादों पर जीआई टैग प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है। अक्टूबर 2016 में बिहार ने भागलपुर के जर्दालु आम, कतरनी धान एवं मगही पान समेत शाही लीची को बिहारी पहचान दिलाने के लिए आवेदन किया था। इसमें तीन उपज पर बिहार का दावा मान लिया गया, लेकिन मुजफ्फरपुर की शाही लीची को लटका दिया गया।

Muzaffarpur, Litchi

क्या है जीआई टैग : विश्व व्यापार संगठन द्वारा जीआई टैग यानि भौगोलिक संकेतक विशिष्ट उत्पादों को दिया जाता है। यह निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निर्मित या उत्पन्न कृषि, प्राकृतिक, हस्तशिल्प या औद्योगिक सामान को दिया जाता है। इसका मुख्य मकसद उत्पादों को संरक्षण देना होता है। भारत में सबसे पहले 2004 में पश्चिम बंगाल को दार्जिलिंग चाय का जीआई टैग दिया गया था।

Muzaffarpur, Litchi

Input : Dainik Jagran

 

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