प्राचीन लिच्छवी राजाओं की राजधानी वैशाली का निकटवर्ती मुजफ्फरपुर अघोषित रूप से बिहार की सांस्कृतिक राजधानी तो है ही इसके साथ भी इस जिले की अपनी एक विशिष्ट संस्कृति है, समृद्ध इतिहास है।
मुजफ्फरपुर जहां अपने सूती वस्त्र उद्योग के साथ लीची जैसे फलों के उम्दा उत्पादन के लिए यह पूरी दुनिया में विख्यात है। बज्जिका यहां की बोली है और हिन्दी तथा उर्दू यहां की मुख्य भाषाएं।

तीसरी सदी में भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरणों से यह पता चलता है कि यह क्षेत्र काफी समय तक महाराजा हर्षवर्धन के शासन में रहा। उनकी मृत्यु केबाद स्थानीय क्षत्रपों का कुछ समय शासन रहा तथा आठवीं सदी के बाद यहां बंगाल के पाल वंश के शासकों का शासन शुरू हुआ जो 1019 तक जारी रहा।

तिरहुत पर लगभग 11 वीं सदी में चेदि वंश का भी कुछ समय शासन रहा। सन 1211 से 1226 बीच गैसुद्दीन एवाज तिरहुत का पहला मुसलमान शासक बना। चंपारण के सिमरांव वंश के शासक हरसिंह देव के समय 1323 में तुगलक वंश के शासक गयासुद्दीन तुगलक ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया लेकिन उसने सत्ता मिथिला के शासक कामेश्र्वर ठाकुर को सौंप दी।

चौदहवीं सदी के अंत में तिरहुत समेत पूरे उत्तरी बिहार का नियंत्रण जौनपुर के राजाओं के हाथ में चला गया जो तबतक जारी रहा जबतक दिल्ली सल्तनत के सिकन्दर लोदी ने जौनपुर के शासकों को हराकर अपना शासन स्थापित नहीं किया। इसके बाद विभिन्न मुगल शासकों और बंगाल के नवाबों के प्रतिनिधि इस क्षेत्र का शासन चलाते रहे। पठान सरदार दाऊद खान को हराने के बाद मुगलों ने नए बिहार प्रांत का गठन किया जिसमें तिरहुत को शामिल कर लिया गया।
1764 में बक्सर की लड़ाई के बाद यह क्षेत्र सीधे तौर पर अंग्रेजी हुकूमत के अधीन हो गया। 1875 में प्रशासनिक सुविधा के लिए तिरहुत का गठन कर मुजफ्फरपुर जिला बनाया गया। मुजफ्फरपुर ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में अत्यंत महत्वपूणर् भूमिका निभाई।
महात्मा गांधी की दो यात्राओं ने इस क्षेत्र के लोगों में स्वाधीनता के चाह की नई जान फूंकी थी। खुदीराम बोस तथा जुब्बा साहनी जैसे अनेक क्रांतिकारियों की यह कर्मभूमि रही है। 1930 के नमक आंदोलन से लेकर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय तक यहां के क्रांतिकारियों के कदम लगातार आगे बढ़ते रहे।
मुजफ्फरपुर लीची के निर्यात के लिए प्रसिद्ध है तो बुने हुए वस्त्र, गन्ना, और अन्य उत्पादों के लिए भी जाने जाते है। जिले में कुछ चीनी मिलों, जो अब पुराने और जीर्ण है। यह उत्तर बिहार की वाणिज्यिक गतिविधियों का केंद्र बन गया है और मुंबई, सूरत और अहमदाबाद के थोक बाजार है। शहर के व्यावसायिक केंद्र मोतीझील है।
लीची फसल मुख्य रूप से मुजफ्फरपुर और आसपास के जिलों के जिलों में खेती की जाती है। यहां की लीची बॉम्बे, कोलकाता जैसे बड़े शहरों के लिए और अन्य देशों को निर्यात किया जाता है। यहां की शाही लीची उत्कृष्ट सुगंध और गुणवत्ता के लिए जाना जाता है।
Note : This article was originally published by Magnificient Bihar