सोमवार सुबह जब आप यह कॉलम पढ़ रहे होंगे जबलपुर के सत्यप्रकाश पब्लिक स्कूल की धानवी सिंह परिहार के हाथों में उसका रिपोर्ट कार्ड होगा और मुझे पूरा विश्वास है कि उसमें कहा गया होगा कि उसे शानदार कामयाबी के साथ चौथी कक्षा में प्रमोट कर दिया गया है। शनिवार रात को रांची जाने वाली ट्रेन में संयोग से उससे मेरी मुलाकात हुई। वह सिर्फ ब्राइट स्टुडेंट ही नहीं है बल्कि सुपर ब्राइट है। लेकिन, मैं इस बात से चिंतित था कि पूरी यात्रा में धानवी या तो आईपैड में व्यस्त थी अथवा अपनी मां के मोबाइल फोन पर कोई गेम खेलती रही थी। उसने शायद ही कभी खिड़की से बाहर देखा होगा, जहां प्रकृति नए-नए रूप में सामने आती जा रही थी।
ऐसा नहीं था कि धानवी पर टेक्नोलॉजी का जुनून सवार था। मोबाइल फोन और गैजेट पर खेलने का उसका समय 24 घंटे तक सीमित है, जो शनिवार दोपहर बाद 4 बजे से शुरू होकर रविवार दोपहर बाद 4 बजे तक रहता है। धानवी का टेक्नोलॉजी से कितनी देर रिश्ता रहे इस पर उनके पैरेन्ट्स का अच्छा नियंत्रण है। यह समय सीमा उसी का नतीजा है, जो अच्छी बात है। मुख्यत: इसलिए कि उसकी दृष्टि कमजोर है- एक आंख में मायनस 12 तो दूसरी में मायनस 8।
लेकिन, मेरी चिंता अलग तरह की थी। वह खिड़की के बाहर बिल्कुल नहीं देख रह थी और बाहर की दुनिया को खुद जानने-समझने और खोज करने की उसमें बिल्कुल जिज्ञासा नहीं थी। इसलिए मैंने उसे कोई कहानी कहने को कहा। वह अपनी मां की ओर मुड़ी और सवाल किया कि वे कहां मुझे कहानी सुनाती हैं। यह सुनते ही मां का चेहरा बुझ-सा गया और धानवी को तत्काल अहसास हो गया कि उससे कोई गलती हो गई है। उसने खुद को सुधारते हुए कहा, ‘मेरा मतलब है कि वे किताब में से तो कहानी पढ़कर मुझे अक्सर सुनाती हैं पर अपनी कोई कहानी मुझे नहीं सुनातीं।’ विश्वास मानिए खुद ही इस तरह अपनी बात उलटकर ऐसे संतुलित वाक्य से मेरे जैसे बाहरी व्यक्ति के सामने अपनी और अपने परिवार की प्रतिष्ठा को संभालना निश्चित ही सुपर आईक्यू वाले बच्चे के ही बस की बात है। ये लोग संवेदनाएं महसूस करते हैं। एम्पेथी का यह गुण संबंधों के प्रबंधन में आवश्यक तत्व है। व्यक्तित्व में संवेदनशीलता होना किसी भी दृष्टि से बहुत आवश्यक है।
हालांकि, मेरे जोर देने पर उसने हाल ही में बैंकॉक में जहाज यात्रा का विवरण सुनाया। उसने शिकायती लहजे में कहा कि कैसे एक आंटी के खर्राटे भरने से रात दो बजे उसकी नींद उड़ गई, जिनके साथ वह रूम शेयर कर रही थी, क्योंकि हर क्रूज़ रूम में दो लोगों को ही रहने की अनुमति थी। लेकिन, उसने क्रूज़ की खिड़की से देखे गए दृश्य या खुले समुद्र का कोई अनुभव नहीं सुनाया। उसका वर्णन स्विमिंग पुल, बफे तथा जहाज पर मौजूद सारी दिखावटी चीजों के बारे में था और उसमें प्रकृति से संबंधित कुछ नहीं था। ये सारी चीजें तो वैसे भी हमारे आसपास होती हैं। इनके लिए बैंकॉक जाने का कोई अर्थ नहीं है।
जब डिनर चल रहा था तो धानवी की मां ने कहा, ‘रविवार से तुम्हें नॉन-वेज नहीं मिलेगा।’ जिस पर धानवी ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘मैं जानती हूं, नवरात्रि शुरू हो रही है।’ जब मैंने पूछा कि वह इस नवरात्रि में वह क्या विशेष करने जा रही है तो उसने कहा, ‘वही जो किसी भी सामान्य दिन करती हूं।’ उसके बाद मैंने उस पर ज्यादा जोर नहीं डाला।
मैं कार से गाडरवारा जाने के लिए पिपरिया में उतरा। मुझे एक आयोजन में गाडरवारा जाना था और 50 किलोमीटर के उस रास्ते में कम से कम 17 गांव आए होंगे। मैंने देखा कि हर गांव में एक खेड़ापति (ग्राम देवी, जो मान्यता के अनुसार गांव की रक्षा करती है) है और महिला, पुरुष और बच्चे समान रूप से देवी के मंदिर में पूजा-अर्चना कर रहे थे, जो गांव के बाहर स्थित था। वे अपने जीवन और संपत्ति की रक्षा करने के लिए देवी के प्रति आभार व्यक्त कर रहे थे। उत्तर के रूप में मुझे धानवी से इसकी और छोटी सी पौराणिक कहानी की अपेक्षा थी, जो आप सब जानते हैं।
धानवी जैसे ज्यादातर बच्चे सुपर स्मार्ट होते हैं लेकिन, कहानी की किताबों के अलावा उन्हें पैरेंट्स के वास्तविक अनुभवों की भी जरूरत है, जो खिड़की के बाहर देखने की उनकी क्षमता बढ़ाएगी ताकि वे दुनिया को अपनी आंखों से देख सकें।
फंडा यह है कि अपने बच्चों को खिड़की से बाहर झांककर इस दुनिया को अपनी दृष्टि से खोजने में मदद कीजिए। इससे वे वैचारिक स्तर पर मजबूत बनेंगे।
एन. रघुरामन
मैनेजमेंट गुरु
Source : Dainik Bhaskar