कृषि वैज्ञानिक ने मंच पर मंत्री के हाथों अवॉर्ड लेने से किया इनकार, कहा- रद्द हो किसान विरोधी क़ानून
सड़क पर आंदोलन कर रहे किसानों के समर्थन में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सबसे पहले अपना प्रतिष्ठित अवार्ड लौटाया था। उसके बाद कई बुद्धिजीवी और खिलाड़ियों ने भी किसानों के समर्थन में अवार्ड वापस करने की बात कही। अब कृषि वैज्ञानिक ने भी किसानों का समर्थन करते हुए केंद्रीय मंत्री से अवार्ड लेने से इनकार कर दिया।
लुधियाना स्थित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के मिट्टी वैज्ञानिक वरींद्र पाल सिंह ने केंद्रीय मंत्री के हाथों अवार्ड लेने से इनकार कर दिया है। दरअसल उनके बेहतरीन कार्यों को देखते हुए Fertilisers Association of India ने उन्हें गोल्डेन जुबली अवार्ड से सम्मानित करने की बात कही थी। इसके बाद सोमवार को एक समारोह में उन्हें मंच पर अवार्ड लेने के लिए बुलाया गया।
मंच पर जाने के बाद वीरेंद्रपाल सिंह ने रसायन औऱ उर्वरक मंत्री डी.वी. सदानंद गौड़ा और एसोसिएशन को धन्यवाद किया। जैसे ही केंद्रीय मंत्री उन्हें अवार्ड देने वाले थे उन्होंने बड़ी ही शालीनता के साथ अवार्ड लेने से इनकार कर दिया। अवार्ड लेने से इनकार करने के बाद उन्होंने खेद जताते हुए माफी भी मांगी।
कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि ‘मेरा अंतःकरण मुझे यह अवार्ड लेने की अनुमति नहीं देता। मुझे लगता है कि अगर इस समय मैं यह अवार्ड लेता हूं तो मैं दोषी हो जाउंगा।’ वीरेंद्र पाल सिंह ने इसके बाद केंद्रीय मंत्री को लिखकर कर दिया कि ‘इस समय देश एक विपदा से गुजर है जब किसान अपनी जायज मांगों को लेकर सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं…और सरकार एंटी-नेशनल कानून को वापस लेने की उनकी मांग को नहीं मान रही है।’
वीरेंद्र पाल सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अलग से भी एक खत लिखा है। इसमें उन्होंने लिखा है कि ‘मेरा अंतःकरण मुझे अनुमति नहीं देता कि मैं किसी भी सरकारी अधिकारी से अवार्ड लूं क्योंकि भारत सरकार शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे किसानों को बेवजह दर्द दे रही है। उन्होंने आगे लिखा कि ‘जिस तरह से किसानों को तोड़ने का प्रयास सरकार कर रही है और जिस अनुशासन में रह कर किसान प्रदर्शन कर रहे हैं यह एक इतिहास है। ठंड के दौरान भारतीयों को सड़क पर छोड़ देना और उनकी जायज मांगों को नहीं मानना यह देशहित में नहीं है।’
वीरेंद्रपाल सिंह की गिनती बड़े कृषि वैज्ञानिकों में होती है। उन्होंने एक खास तकनीक विकसित की है जिसके जरिए किसान खेतों में यूरिया का कम से कम इस्तेमाल कर अपनी पैदावार बढ़ा सकते हैं। उनके शोध की वजह से अकेले पंजाब में 750 करोड़ रुपए की बचत हुई है।