यदि आपको बिहार की स्थिति समझनी है तो कभी फुर्सत में समय निकालकर दोपहर १ – १.३० बजे नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म संख्या १४ पर जाइये ! आप में से बहुत लोगों ने यह दृश्य कभी नहीं देखा होगा। प्लेटफार्म के आगे और पीछे साइड सैंकड़ों लोग लाइन में लगे रहते हैं। भीड़ इतनी ज़बरदस्त कि उसे संभालने और किसी अप्रिय घटना को रोकने के लिए RPF के कई जवान तैनात रहते हैं। यह भीड़ बिहार के उन गरीब व्यक्तियों कि रहती है जो बिहार-संपर्क क्रांति एक्सप्रेस के सामान्य (जनरल) डिब्बे में चढ़ने आये होते हैं। २.३० पर जो ट्रेन खुलती है उसके जनरल डिब्बे में चढ़ने भर कि जगह मिल जाये इसलिए ये लोग सुबह १०-११ बजे से ही लाइन लगाना आरम्भ कर देते हैं। इनका गंतव्य सीवान, छपरा, सोनपुर, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर एवं दरभंगा रहता है। RPF कि मौजूदगी के बावजूद मार-पीट, भगदड़, लाठीचार्ज बहुत ही सामान्य है।

जनरल डिब्बे की क्षमता १०० लोगों की होती है, परन्तु हर डब्बे में कम से कम २५० लोग तो अवश्य रहते हैं। एक सीट पर चार कि जगह आठ लोग बैठते हैं तो नौवां आ कर कहता है, “थोड़ा घुसकिये जी, आगे-पीछे हो कर बैठिएगा तो थोड़ा जगह बनिए जाएगा। शौचालय से ले कर पायदान तक एक भी जगह खाली नहीं रहता। यदि आप एक बार अंदर चले गए तो शायद शौचालय जाने के लिए ऎसी जद्दोजहद करनी होगी कि शायद आधा-एक घंटा इसी में निकल जाए। यही स्थिति प्रायः बिहार जाने वाली सभी ट्रेन में रहती है – वैशाली एक्सप्रेस, विक्रमशिला एक्सप्रेस, सम्पूर्ण क्रांति एक्सप्रेस, स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस, महाबोधि एक्सप्रेस इत्यादि। यदि आप दिल्ली में नहीं रहते तो कोई बात नहीं। मुंबई, इंदौर, जालंधर, सूरत, अहमदाबाद, बैंगलोर एवं पुणे से जो ट्रेनें बिहार जाती हैं, आप उनमें भी यही स्थिति पाएंगे।

बिहार में नौकरी नहीं है। यदि आप बिहार सरकार की नौकरी नहीं कर रहे तो बिहार में आपके लिए कुछ नहीं है। उद्योग का नामोनिशान नहीं है। आप मजदूर हों या मैकेनिक, अकाउंटेंट हों या मैनेजर, इंजीनियर हों या वैज्ञानिक, बिहार में आपके लिए कुछ नहीं है। यहां तक कि खेती करने वाले मजदूरों को भी पंजाब और हरयाणा आ कर बड़े किसानों के यहाँ मजदूरी करनी पड़ती है । दिल्ली में रिक्शा चलाने वाले, कंस्ट्रक्शन लेबर, इधर-उधर काम करने वाले मजदूर – अधिकतर बिहार के होते हैं। यही हाल देश के अन्य शहरों में है विशेष रूप से गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य-प्रदेश और पंजाब।

बिहार को सुनियोजित ढंग से ख़तम कर दिया गया । बिहार को जातिवाद की आग में सालों जलाया गया, गुंडागर्दी और रंगदारी को बेलगाम होने दिया गया, सभी उद्योगों एवं नौकरियों पर क्रूरता से प्रहार किया गया। प्रहार ऐसा कि आज तक बिहार नहीं उभर पाया है। सामजिक न्याय और समाजवाद के नाम पर लोगों को कहा गया कि सड़क और बिजली का कोई काम नहीं क्यूंकि सड़क पर गाड़ियां अमीरों कि चलती हैं और बिजली से मौज-मस्ती अमीरों के घर में होता है। यूनियन और गुटबाजी कर के सारे चीनी मिल और उद्योगों को बंद करा दिया गया। उद्योगपति, इंजीनियर, डॉक्टर, प्रोफेसर, शिक्षक, स्किल्ड मैकेनिक, एक-एक कर सभी बिहार छोड़ते चले गए। गाँव से जो अनवरत पलायन आरम्भ हुआ वो आज तक जारी है। सरकारों ने रोड और बिजली अवश्य दे दिया, परन्तु पिछले 13 वर्ष में उद्योग नहीं आरम्भ कर सके। इस कारण से आज भी बिहार में यदि कोई चारा है तो सरकारी नौकरी ही है । दुःख की बात यह है कि लोग समझते नहीं हैं कि सरकार सभी को सरकारी नौकरी नहीं दे सकती।

नौकरी का सबसे बड़ा स्रोत निजी क्षेत्र ही होता है। गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, कर्णाटका, तमिल नाडु – ये सब वो राज्य हैं जहाँ बिहार के लोग नौकरी कि तलाश में जाते हैं – छोटी से छोटी नौकरी से ले कर बड़ी नौकरी तक। इसका कारण एक ही है – यह सभी राज्य Industrialised हैं। बिहार में एक ऐसी धारणा बना दी गयी सालों तक कि उद्योगपति लूटेरे होते हैं, उद्योग लगाना एक डाका है । प्राइवेट मतलब लूट । इंडस्ट्री को लूट का पर्याय बना दिया गया। आज बिहार में आलम यह है कि लोग धक्के और ठोकर खाते हुए देश के विभिन्न राज्य में नौकरी करने जाएंगे, लेकिन जैसे ही उद्योग की बात करो सबसे पहले उद्योगपतियों को गाली देंगे। अपने आप में यह एक विचित्र विडम्बना है बिहार के इस समाज की।

biharis, delhi

जब तक कोई ऎसी सरकार नहीं आती बिहार में जिसका प्रमुख फोकस “Industrialization” हो, बिहार इसी गर्त में डूबा रहेगा। पलायन जारी रहेगा और जनता कि निराशा बढ़ती रहेगी। आज दिल्ली, मुंबई, जालंधर, सूरत, बैंगलोर, चेन्नई, इंदौर, पुणे जैसे शहर अपनी क्षमता से कई गुना अधिक बोझ उठाये हुए हैं। इस प्रेशर के कारण इन शहरों का इंफ्रास्ट्रक्चर भी चरमरा चूका है। यह शहर और लोगों को नहीं समा सकते। जब तक बिहार नहीं उठेगा, यह देश नहीं उठ सकता। हम कब तक दुसरे राज्यों पर बोझ बनेंगे ? हम कब तक घर से दूर ठोकर खाते फिरेंगे ? हम कब तक अपनी मिटटी से दूर सिर्फ जीवनयापन की तलाश में दर-दर भटकते फिरेंगे ? क्या बिहार कभी अपने उस स्वर्णिम दौर को पुनः प्राप्त कर सकेगा ? आज देश के जिस राज्य में जाता हूँ, उसका हाल बिहार से बेहतर ही पाता हूँ। यह पीड़ा शायद एक

बिहारी ही समझ सकता है।

मेरी आप सभी से एक ही सलाह है – छद्म “सामाजिक न्याय” और “समाजवाद” के नाम पर जातिवाद का जहर फिर से न पनपने दीजिये। हमने इसे सालों झेला है और आज भी उसी पीड़ा का अनुभव कर रहे हैं। एक बिहार फिर भी किसी तरह से इसे संभाल रहा है। इस देश में ३० बिहार न होने दीजिये। हम कहीं के नहीं रहेंगे, हमारी अगली पीढ़ी केवल और केवल हमें कोसेगी। जो भाग सकते हैं, वो विदेश भाग जायेंगे या फिर कोई न कोई उपाय निकाल लेंगे। जो पिसेंगे वह मध्यम-वर्ग, निम्नमध्यम-वर्ग और गरीब तबका ही होगा। आज भी जो बिहार में अमीर हैं, उनकी जिंदगी में शायद ही कोई दिक्कत आया है। बिहार इस देश के लिए एक सीख है । इस देश में और बिहार न होने दीजिये।

ये लेखक का व्यक्तित्व विचार है

Advertise, Advertisement, Muzaffarpur, Branding, Digital Media

Previous articleबिहार के युवक की सऊदी अरब में हत्या, रेगिस्तान में दफना दिया शव
Next articleपटना में एके-47 लेकर घूम रहे बेखौफ अपराधी, 25 दिन में 12 हत्याएं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here