बिहार के बेगूसराय में एक किसान के बगीचे में आम, लीची व अमरूद आदि के पेड़ आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। ये पेड़ हैं भी जरा हटकर। उनपर कई किस्मों के फल आते हैं। ऐसे ही आम के एक पेड़ पर 45 किस्म के फल आते हैं। सात-सात किस्मों के फल देने वाले लीची व अमरूद के पेड़ भी हैं।

हम बात कर रहे हैं बेगूसराय के लखमिनियां निवासी चर्चित बागवान अब्दुल बरकत अली की, जो अपने बगीचों और नर्सरी में तरह-तरह के प्रयोगों के लिए प्रतिष्ठित हो चुके हैं। प्रशासन उनके बारे में डाक्यूमेंट्री बनवा रहा है। इसे दिखाकर किसानों को प्रगतिशील बागवानी के लिए प्रेरित किया जाएगा।

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ठगी से पैदा हुआ जुनून

अब्दुल बरकत अली, जो अब अली चाचा के नाम से भी मशहूर हैं, की कहानी बड़ी दिलचस्प है। बात 1970 की है। बरकत अली के सर पर मालदह आम का बगीचा लगाने का जुनून सवार था। वे हाजीपुर की एक नर्सरी से मालदह आम के 25 पौधे ले लाए। आठ-दस साल खूब सेवा और देखभाल करके इन्हें पाला-पोसा, पर इनमें फल आते ही उन पर मानो वज्रपात हो गया। 25 पेड़ों में सिर्फ दो मालदह निकले, बाकी देसी जंगली। मेहनत मिट्टी में मिल गई और मालदह बगीचे का ख्वाब चूर-चूर, पर इस ठगी ने उनके सर पर नया जुनून सवार कर दिया। उन्होंने संकल्प लिया कि वह खुद ऐसी नर्सरी विकसित करेंगे, जहां कोई ठगा न जाए।

अब 75 साल के इन जनाब की सिर्फ एक बीघा क्षेत्र की नर्सरी हरियाली प्रेमियों के बीच खास पहचान बना चुकी है। यहां दर्जनों किस्म के आम, लीची और अमरूद के पौधे हैं।

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पेड़ देखने दूर-दूर से आते लोग

कहते हैं कि सूरज की तरफ चेहरा रखिए तो आपको काली छाया नहीं दिखेगी। एक साधारण पंप मिस्त्री के पुत्र बरकत अली इसी सकारात्मक सोच से इस मुकाम पर पहुंचे। उनके बहु प्रजातीय पेड़ देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। उनका लक्ष्य ऐसे पौधे विकसित करना है जिनमें 200 किस्म के आम और 15-15 किस्म की लीची व अमरूद फले। उनके प्रयोग और शोध को देखने कृषि और उद्यान विज्ञानी भी लखमिनियां आते रहते हैं।

पेड़ से हो सकती अच्छी आमदनी

बरकत कहते हैं कि पेड़-पौधों की ठीक से सेवा और देखभाल की जाए तो वे फल देने में कोताही नहीं करते।  इससे अच्छी आमदनी भी हो सकती है। नर्सरी से वे हर महीने 70-80 हजार रुपये कमा लेते हैं। उनका दावा है कि आम का सिर्फ एक पेड़ साल में एक लाख रुपये तक आमदनी करा सकता है।

कई राज्यों में दे चुके प्रशिक्षण

वे अब तक हजारों किसानों को बागवानी का निस्वार्थ प्रशिक्षण दे चुके हैं। वे बिहार के कई जिलों के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड और हिमाचल प्रदेश में भी किसानों के साथ कार्यशालाएं कर चुके हैं।

मां ने सिखाया, मिट्टी से प्यार करो, सोना पैदा होगा

बरकत अली बताते हैं कि 1959 में जीडी कॉलेज (बेगूसराय) में पढ़ते थे। उसी दौरान एक फुटबॉल मैच खेलने बड़हिया गए। अच्छे खेल के आधार पर रिफाइनरी में नौकरी मिल गई, लेकिन मां ने कहा कि सरकारी नौकरी मत करो। अपनी मिट्टी से प्यार करो, सोना पैदा होगा।

उन्होंने मां की नसीहत गांठ बांधकर नौकरी करने का इरादा छोड़ दिया और खेती करने लगे। कहते हैं कि जिस तरह पशुपालक गाय की सेवा करते हैं। उसके दाना-पानी, मौसम और बीमारी पर नजर रखते हैं, उसी तरह पेड़-पौधों की भी सेवा करनी पड़ती है। उनकी लगन का नतीजा है कि उनके बगीचों में आम, लीची और अमरूद के पेड़ों में हर साल फल आते हैं, जबकि आम धारणा है कि एक साल फलने के बाद अगले साल फल नहीं आते।

मलीहाबाद के कलीमुल्ला खां से सीखा हुनर

दशहरी आम के लिए विख्यात मलिहाबाद (लखनऊ) में एक बागवान हैं, कलीमुल्ला खां। उन्‍हें उनकी बागवानी संबंधी असाधारण उपलब्धियों के लिए पद्मश्री सम्मान मिल चुका है। कलीमुल्ला ने आम की 300 किस्मों वाला पौधा विकसित किया है। उनका नाम सुनकर बरकत अली मलिहाबाद गए और काफी दिन उनकी शागिर्दी में रहकर बागवानी के गुर सीखे। फिर लखमिनियां लौटकर आम, लीची और अमरूद के एक पेड़ में कई किस्में पैदा करने का करिश्माई प्रयोग किया।

ब्लैक मेंगों उनकी नर्सरी की खास प्रजाति है। इसका पत्ता और फल भी काला होता है। इसी प्रकार लॉग ऑन लीची, जो अगस्त में फलती है, के पौधों की बहुत मांग है।

Input : Dainik Jagran

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