पांचवीं में पढ़ने वाला रैना अखाड़ाघाट रोड पर रविवार की दोपहर शहर की कोचिंग का पंफलेट हाथ में लेकर घूम रहा था. साइकिल, मोटरसाइकिल व रिक्शा से जाने वाले लोगों के हाथ में पूरे उत्साह से परचा दे रहा था. कोई आगे निकल जाता, तो उसके पीछे दौड़ कर जाता, लेकिन बिना परचा थमाये वापस नहीं लौटता. उसके हाथ में जो परचा था, उस पर मेडिकल-इंजीनियरिंग की बेहतर तैयारी व करियर संवारने के दावे थे.
लेकिन रैना को यह नहीं पता, क्योंकि सबकुछ अंग्रेजी में लिखा था. उसे तो इस बात से मतलब था कि कब दिन गुजरे और हाथ में डेढ़-दौ सौ रुपये मिले. शहर में मेडिकल व इंजीनियरिंग सहित अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए सैकड़ों कोचिंग खुले हैं, जो प्रचार प्रसार के लिए गरीब घरों के बच्चों को काम पर लगा दिये हैं. माधोपुर के ही रहने वाले सुधांशु रंजन 10वीं में पढ़ता है. बताया कि वह स्कूल के साथ कोचिंग में भी पढ़ता है. संडे के दिन परचा बांटने वाला काम कर लेता है, जिससे कुछ पैसे मिल जाते हैं.
अखाड़ाघाट के अमितेष आठवीं कक्षा में पढ़ता है. बताया कि रविवार के दिन कोई परीक्षा होने पर दो सौ रुपये मिलते हैं. सोमवार से शनिवार तक डेढ़ सौ रुपये मिलते हैं. अमितेष को नहीं पता कि जो परचा बांट रहा है, उस पर क्या लिखा है. बस यह बताया गया है कि सभी को देना है. तो वह सड़क पर परचा लेकर दौड़ता रहता है.