हमारे यहां अगर एक साथ 200 महिलाओं को इकट्ठा करना है तो बड़ी मुश्किल होती है मगर यहां पांच सौ-हजार महिलाएं बड़ी अनुशासित ढंग से आती हैं। कई महिलाएं गुजरात से यहां आने से डर रहीं थी कि पता नहीं कैसा माहौल हो मगर यहां आकर जिस तरह हमने महिलाओं को एकजुट होकर काम करते देखा है, वह हमारे लिए प्रेरणा बन गईं।
हम इन्हें स्वच्छता का पाठ पढ़ाने आए थे मगर इन्होंने हमें एकजुटता और आत्मविश्वास का पाठ पढ़ा दिया। गुजरात जाकर इन महिलाओं की मेहनत और जज्बे की कहानी बताऊंगी कि सच्चाई वह नहीं जो सुनी थी बल्कि सच्चाई यह है जो हमने देखी है। महिला संगठन से जुड़ी हंसा और खेरू निशां हो या कॉलेज की छात्राएं निशी, हेतवी और निमिषा हो। बिहारी महिलाओं की मेहनत और जज्बे को देख सभी दंग हैं।
हंसा गोस्वामी, हंसा बहन जयराम पटेल, खेरू निंशा आदि कहती हैं कि एक आवाज पर जिस तरह सभी महिलाएं एकजुट हो जाती हैं, वह अद्भूत हैं। हम कई वर्षों से गुजरात की महिला संगठन सखी महिला मंडल और कच्छ महिला विकास संगठन से जुड़े हैं मगर वहां इस तरह इतनी संख्या में हम कभी महिलाओं को एक साथ नहीं ला पाते। एक मंच पर लाना और उन्हें प्रेरित करना वहां अधिक कठिन हैं। यहां की महिलाओं में समझ और कुछ करने का जज्बा अधिक है। सामाजिक एकजुटता और कुछ करने के लिए आगे आने का जज्बा यहां कमाल का है। खासकर जीविका से जुड़ी महिलाओं का अनुशासन।
आर्थिक आजादी न मिलना करता हैरान
परदेस से आयीं ये महिलाएं कहती हैं कि इन सबके बावजूद बिहार की महिलाओं को आर्थिक आजादी नहीं है जो हैरान करती है। महिलाओं के पास हुनर, मेहनत और जज्बा है मगर उन्हें वह मंच नहीं मिल रहा। कॉलेज छात्राएं निशी, हेतवी कहती हैं कि बहुत पढ़ी-लिखी नहीं होने के बाद भी महिलाओं का आत्मविश्वास कमाल का है। शिक्षा के प्रति उतनी जागरूकता नहीं है। मेरी उम्र की लड़कियां घर में हैं। स्कूल जाने की बात पर बताती हैं कि मां-बाप मजदूरी करते हैं इसलिए मैं घर संभालती हूं। यह गलत हैं।
Source : live hindustan