शहर की सड़कों और चौक-चौराहों को अतिक्रमण से मुक्ति दिलाने को कई अभियान चलाए गए। कई बैठकों में कितनी ही योजनाएं बनीं, लेकिन यह सब कभी हकीकत नहीं बन सकीं।

शहरवासियों को अतिक्रमण के कारण होनेवाले जाम से मुक्ति दिलाने के लिए जितने भी अभियान चले, उनका सार्थक व टिकाऊ परिणाम नहीं निकला। उनका असर घंटा-दो घंटा भी नहीं रहा। हां, इनके नाम पर हर बार पैसे एवं श्रम की बर्बादी जरूर हुई। दंडाधिकारी, पुलिस बल, निगम के कर्मचारियों एवं प्रशासनिक पदाधिकारियों का समय एवं श्रम बेकार गया और प्रशासनिक एवं निगम के वाहनों के ईंधन पर हुआ खर्च अनुपयोगी साबित हुआ।

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प्रशासन के पास नहीं है ब्लू प्रिंट

ब्लू प्रिंट के अभाव में प्रशासन अतिक्रमण के खिलाफ अभियान के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर रहा है। अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कानून होने के बाद भी उसका उपयोग नहीं किया जा रहा है। प्रशासन के नरम रवैये ने अतिक्रमणकारियों के हौसले को बुलंद कर दिया है। लोगों का आरोप है कि अतिक्रमणकारियों को प्रशासनिक शह से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। यदि ऐसा नहीं होता तो अतिक्रमण कब का हट गया होता।

घंटा-दो घंटा भी नहीं टिकता अतिक्रमण हटाओ अभियान का असर

अतिक्रमण हटाने के नाम पर किया गया खर्च साबित नहीं होता सार्थक

क्या कहता है कानून

बिहार नगरपालिका अधिनियम की धारा 435 के अनुसार नगरपालिका संपत्ति यानी सड़क, गली या पगडंडी का अतिक्रमण या उसमें अवरोध पैदा करना कानूनन अपराध है। ऐसा करने वालों पर एक हजार तक का जुर्माना लगेगा।

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धारा 436 के अनुसार जुर्माना नहीं देने पर कारावास की सजा का प्रावधान है, जो छह माह या उससे अधिक की हो सकती है।

बिहार पब्लिक लैंड अतिक्रमण अधिनियम की धारा 3 के तहत जनहित में किसी भी प्रकार अतिक्रमण प्रशासन हटा सकता है।

 

कभी हकीकत नहीं बन पाती प्रशासनिक कवायद घंटे भर भी नहीं दिखता असर

 

प्रशासनिक कवायद

वर्ष 2009 में तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त एसएम राजू ने प्रशासन के आलाधिकारियों के साथ शहर का भ्रमण किया। उन्होंने सड़क एवं नाले का अतिक्रमण करने वालों को चिह्न्ति कर प्राथमिकी दर्ज कराने का निर्देश दिया। लेकिन, आज तक प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई गई।

डीएम संतोष कुमार मल्ल ने वर्ष 2011 में शहर का भ्रमण कर सड़क एवं नालों पर अतिक्रमण करने वालों पर कानूनी कार्रवाई के लिए निगम को लिखा था, लेकिन आदेश पर अमल नहीं हुआ।

वर्ष 2010 में तत्कालीन डीएम आनंद किशोर ने शहर की यातायात व्यवस्था को दुरस्त करने के लिए आयोजित बैठकों में अतिक्रमण से निपटने के लिए कई फैसले लिए, लेकिन उसपर अमल नहीं हुआ।

वर्ष 2012 में तत्कालीन डीएम संतोष कुमार मल्ल ने अतिक्रमणकारियों से निपटने के लिए बैठक कर रणनीति बनाई। एसडीओ पूर्वी, मुशहरी सीओ समेत आधा दर्जन दंडाधिकारियों को लगाया गया। पर सारा प्रयास विफल साबित हुआ।

वर्ष 2015 में अतुल प्रकाश ने अतिक्रमण के खिलाफ लगातार बैठकें कीं तो डीएम धर्मेद्र सिंह ने निगम की सहायता से अभियान चलाया। पर, इसका भी असर नहीं दिखा अतिक्रमण घटने की जगह बढ़ता गया।

अप्रैल 2018 में पदभार ग्रहण करते ही वर्तमान डीएम मो. सोहैल ने नगर आयुक्त संजय दुबे के साथ मिलकर अतिक्रमण के खिलाफ अभियान शुरू किया।

Input : Dainik Jagran

 

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