बिहार में लोकसभा की एक तथा विधानसभा की दो सीटों पर उपचुनाव के नतीजे आ चुके हैं। इसे कोई पैमाना मानें तो सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को झटका लगा है। साथ ही उपचुनाव में सहानुभूति का फैक्टर अन्य मुद्दों पर भारी पड़ा है। इस उपचुनाव ने विपक्षी महागठबंधन को ‘मिशन 2019’ के लिए टॉनिक दिया है तो लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव के कद को बड़ा किया है।
अहम रहा सहानुभूति फैक्टर
उपचुनाव के अररिया लोकसभा तथा जहानाबाद व भभुआ विधानसभा सीटों पर विजयी प्रत्याशियों की बात करें तो उन्हें सहानुभूति वोट भी मिले हैं। मो. तस्लीमुद्दीन के निधन से रिक्त अररिया लोकसभा सीट पर राजद से उनके पुत्र मो. सरफराज आलम विजयी रहे। उन्होंने तस्लीमुद्दीन के कार्यों पर वोट मांगा था। उधर, राजद विधायक मुंद्रिका प्रसाद यादव के निधन से रिक्त जहानाबाद विधानसभा सीट पर उनके पुत्र व राजद प्रत्याशी सुदय यादव विजयी रहे। भभुआ में भाजपा विधायक आनंद भूषण पांडेय की मृत्यु से रिक्त सीट पर भाजपा से उनकी पत्नी रिंकी रानी की जीत हुई है।
बिहार के उपमुख्यमंत्री व भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने भी अपने ट्वीट में माना कि चुनाव में ‘सहानुभूति लहर’ थी। मोदी ने कहा कि लोकसभा की एक और विधान सभा की दो सीटें निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की असामयिक मृत्यु से रिक्त हुईं थीं, जिनपर उनके परिजन ही चुनाव लड़ रहे थे। जनता ने सहानुभूति में उन्हें शेष बचे कार्यकाल के लिए वोट देकर विजयी बनाया है।
प्रतिष्ठा का सवाल बना था उपचुनाव
बिहार में बीते साल जुलाई में राज्य के सत्ता समीकरण में बदलाव के बाद यह पहला चुनाव था। इसकी अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी, लालू प्रसाद यादव के पुत्र व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार के खिलाफ विद्रोह का झंडा थामे शरद यादव एवं महागठबंधन में लालू प्रसाद के नए सहयोगी व पूर्व मुख्यवमंत्री जीतनराम मांझी सहित दोनों तरफ के अनेक बड़े नेताओं ने प्रचार किया। खासकर अररिया व जहानाबाद सीटों पर सभी की नजर रही।
अररिया: तस्लीमुद्दीन के नाम पर मिले वोट
अररिया लोकसभा सीट ‘सीमांचल के गांधी’ उपनाम से प्रसिद्ध रहे राजद के मो. तस्लीमुद्दीन की मृत्यु के बाद रिक्त हुई थी। वहां उनके बेटे व राजद प्रत्याशी सरफराज आलम ने भाजपा से राजग प्रत्याशी प्रदीप सिंह को करीब 61615 मतों से हराया।
बीते लोकसभा चुनाव (2014) के दौरान भाजपा की लहर में भी यहां राजद के मो. मस्लींमुद्दीन ने जीत दर्ज की थी। भाजपा इस उपचुनाव में उस हार की भरपाई करना चाहती थी। उधर, राजद यह बताने की कोशिश में थी कि लालू प्रसाद यादव के जेल में रहने के बावजूद पार्टी उनके बेटे तेजस्वी यादव के नेतृत्व में मजबूत है। अंतत: सरफराज ने जीत दर्ज कर यहां तेजस्वी के बढ़ते कद व राजद की मजबूत उपस्थिति को प्रमाणित कर दिया।
जहां तक मुद्दों की बात है, यहां विकास पर मुस्लिम मुद्दे प्रभावी रहे। अररिया में 40 फीसद से अधिक आबादी मुस्लिम है, जहां मुसलमानों के मुद्दों को प्रभावी होना तो तय था। लेकिन, सबसे बड़ा फैक्टर तस्लीमुद्दीन की मौत को ले उनके बेटे के प्रति उमड़ी सहानुभूति बना। फॉरबिसगंज में शिक्षक मो. अनवार आलम तथा अररिया के व्यवसायी मो. खालिद नदीम ने बताया कि मुसलमानों के बड़े तबके ने तस्लीमुद्दीन ने ‘अच्छा काम’को देख राजद को वोट दिया।
जहानाबाद: प्रतिष्ठा की लड़ाई जीते सुदय
जहानाबाद सीट पर महागठबंधन के प्रत्याशी कुमार कृष्णमोहन उर्फ सुदय यादव ने अपने दिवंगत पिता मुंद्रिका सिंह यादव की जीत का भी रिकार्ड तोड़ दिया। मुंद्रिका सिंह यादव 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद के टिकट पर चुनाव जीते थे। तब जदयू भी महागठबंधन का हिस्सा था। लेकिन, इस उपचुनाव में जदयू ने राजग के घटक के रूप में अभिराम शर्मा को प्रत्याशी बनाया था। सुदय यादव ने अभिराम शर्मा को 41206 वोटों से हराया।
जहानाबाद सीट पर कभी साथ रहे राजद व जदयू के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई थी। यहां जदयू सहित राजग के कई बड़े नेताओं ने कैंप किया था। जहानाबाद में शिक्षक संजीत यादव के अनुसार यहां राजग में प्रत्याशी चयन को लेकर एकमत नहीं बना। मांझी की मांग को दरकिनार कर यह सीट जदयू को दे दी गई। इसके बाद मांझी ने राजग से नाता तोड़ लिया। इसका विपरीत असर जदयू के प्रत्याशी पर पड़ा। दूसरी ओर राजद का वोट एकजुट रहा। जहानाबाद की अनिता सिंह मानती हैं कि राजग की आंतरिक फूट के बीच राजद की जीत तो होनी ही थी। वे मानती हैं कि राजद उम्मीदवार को पिता की मौत के बाद उमड़ी सहानुभूति का भी लाभ मिला।
भभुआ: रिंकी ने मांगे पति के नाम पर वोट
सहानुभूति तो भभुआ सीट पर दिवंगत भाजपा विधायक आनंद भूषण पांडेय की पत्नी व भाजपा प्रत्याशी रिंकी रानी को भी भरपूर मिला। चुनाव प्रचार के दौरान रिंकी अपने बेटों के साथ पति के नाम पर वोट मांगते खूब दिखीं थीं। राजग द्वारा विकास के मुद्दे पर वोट मांगने के कारण भभुआ में मिली जीत को कुछ हद तक विकास के नाम पर वोटिंग कह सकते हैं। लेकिन, यहां भी सहानुभूति हावी रहा।
बिहार की राजनीति में बढ़ा तेजस्वी का कद
बिहार के इस उपचुनाव के दौरान राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव चारा घोटाला में सजा पाकर रांची के जेल में हैं। ऐसे में राजद के भविष्य व पार्टी में नेतृत्व संकट को लेकर सवाल उठाए जा रहे थे। लालू के जेल जाने के बाद पार्टी के भी कुछ नेताओं ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल खड़े किए थे।
लेकिन, लालू ने तेजस्वी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर सभी काे चुप करा दिया। इसके बाद तेजस्वी ने ‘हम’ को महागठबंधन में लाकर साबित किया कि वे पिता की छाया से दूर बड़े फैसले ले सकते हैं। अब प्रतिष्ठा का सवाल बने उपचुनाव में जीत ने तेजस्वी के नेतृत्व पर मुहर लगा दी है।
हालांकि, सुशील मोदी राजद की जीत को तेजस्वी की जीत मानने से इन्कार करते हैं, लेकिन पूर्व स्वारूथ्य मंत्री व राजद नेता तथा तेजस्वी के भाई तेजप्रताप यादव ने जीत का श्रेय तेजस्वी को ही दिया है। तेजप्रताप के अनुसार इस जीत ने तेजस्वी के कद को बढ़ाया है। राजद के भाई वीरेंद्र सहित कई और नेताओं ने भी तेजस्वी के नेतृत्व की सराहना की है।