श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की नींव का निर्माण अब 1200 भूमिगत खंभों के बजाय प्राचीन पद्धति से होगा। इसकी संरचना तय करने के लिए देश के ‘टॉप 8 टेक्नोक्रेट’ सदस्यों की कमेटी ने सोमवार को श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को रिपोर्ट सौंपी। कमेटी की अध्यक्षता दिल्ली आईआईटी के पूर्व निदेशक वीएस राजू कर रहे हैं। ट्रस्ट की निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र ने बताया कि रिपोर्ट में दो तरीकों- ‘वाइब्रोस्टोन कॉलम’ और ‘कंटीन्यूअस राफ्ट स्टोन’ तकनीक से नींव निर्माण का सुझाव दिया गया है। मिश्र ने बताया, ‘दोनों पद्धतियां व्यवहारिक और उच्च गुणवत्ता की हैं। ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष गोविंद देव गिरी ने कहा कि रिपोर्ट आ गई है। अब 29 दिसंबर को ट्रस्ट की दिल्ली में होने वाली बैठक में सुझावों पर विचार कर निर्णय लेंगे। भव्य निर्माण के लिए कोई समझौता नहीं होगा।

प्राचीन काल में किलों की नींव इसी तकनीक से बनती थी, अब बांधों की बनाई जा रही है
जबलपुर में जैन मंदिर निर्माण के लिए तकनीकी विशेषज्ञ के रूप में काम कर रहे इंजीनियर स्नेहल पटेल ने बताया, ‘वाइब्रोस्टोन कॉलम व कंटीन्यूअस राफ्ट स्टोन तकनीक से ही प्राचीन काल में पत्थर से बड़े मंदिरों, किलों और महलों की नींव बनती थी। अब आधुनिक मशीनों से भी इस तकनीक से नींव तैयार हो सकती है।

कंटीन्यूअस राफ्ट स्टोन: पत्थर, चूना, बालू की सतह बिछाते हैं
इसमें एक निश्चित गहराई तक खुदाई होती है। इसके बाद पत्थर, बालू व चूने की परत बिछाई जाती हैं। प्रत्येक स्तर को निश्चित तरीके से दबाव डाल स्थिरता व मजबूती प्रदान की जाती है। जिसके ऊपर प्लेटफाॅर्म तैयार कर मंदिर का निर्माण होगा।

वाइब्रोस्टोन कॉलम: पत्थरों के कॉलम ऊपर लाए जाते हैं
इसमें भूमि की गहराई से पत्थरों के कॉलम संरचना के खास पैटर्न में सतह तक लाए जाते हैं। जमीन को ऐसी ताकत दी जाती है जिससे सतह मजबूती के साथ भूकंप और भूजल से भी सुरक्षित रहती है। ऊपर राफ्ट तैयार की जाती है।

तकनीकों में व्यवहारिकता व उच्च गुणवत्ता
दोनों तकनीकों का मकसद भूमि की शक्ति और गुणवत्ता में वृद्धि करना है।

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