बिहार : राज्य में जातीय जनगणना पर नीतीश कैबिनेट की मुहर लग गई है। सीएम नीतीश की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में जातीय जनगणना समेत 12 फैसलो को हरी झंडी मिली। जातीय जनगणनाआठ महीने के अंदर पूरी करा ली जाएगी। राज्य सरकार अपने ही संसाधनों से गणना कराएगी।

गणना के लिए बिहार आकस्मिक निधि से 500 करोड़ रुपये का प्रावधान

बिहार के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने कैबिनेट के फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि, कई स्तरों पर राज्य मे गणना होगी। सामान्य प्रशासन को इसकी मुख्य जिम्मेदारी दी जाएगी। जिला स्तर पर जिला प्रशासन इसके पदाधिकारी होंगे। पंचायत स्तर पर भी जिम्मेदारी तय की जाएगी। गणना के लिए बिहार आकस्मिक निधि से 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया जाएगा।

सर्वदलीय बैठक में मे लिया गया था निर्णय

ज्ञात हो की, बुधवार को ही सीएम नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई सर्वदलीय बैठक में सर्वसम्मति से बिहार में सभी धर्मों की जातियों और उपजातियों की जनगणना का निर्णय लिया गया था। सर्वदलीय बैठक के बाद सीएम नितीश ने यह भी घोषणा की थी कि बहुत ही कम समय सीमा निर्धारित कर राज्य मे जाति आधारित गणना पूरी होगी। इसके लिए बड़े पैमाने पर तेजी से काम होगा।

बीजेपी की तीन मांग

बीजेपी ने जातीय जनगणना को लेकर तीन आशंकाएं जताई हैं। बिहार बीजेपी अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने कहा हैं कि, जाति आधारित गणना कराने के दौरान तीन आशंकाओं के निदान सुनिश्चित कराने का आग्रह हमने सीएम नीतीश कुमार से किया हैं। बैठक में इस बात की सहमति व्यक्त की गई कि जाति एवं जाति में भी उपजाति आधारित सभी धर्मों की गणना होगी। हम केंद्र के बाबा साहब अंबेडकर के संविधान प्रदत्त सातवें शेड्यूल के अधिकारों में किसी तरह की छेड़खानी नहीं करेंगे। मुख्यमंत्री के सामने तीन आशंकाएं प्रकट की हैं, जिनका निदान राज्य मे गणना करने वाले कर्मचारियों को स्पष्ट रूप से बताना होगा।

क्या हैं तीनों मांग?

पहली मांग – गणना के दौरान कोई रोहिंग्या और बांग्लादेशी का नाम नहीं जुड़ जाए और बाद में वह इसी के आधार पर नागरिकता को आधार नहीं बनाए।
दूसरी मांग – सीमांचल में मुस्लिम समाज में यह बहुतायत देखा जाता है कि अगड़े शेख समाज के लोग शेखोरा अथवा कुलहरिया बन कर पिछड़ों की हकमारी करने का काम करते हैं। यह भी गणना करने वालों को देखना होगा।
तीसरी मांग – भारत में सरकारी तौर पर 3747 जातियां है और केंद्र सरकार ने स्वयं सुप्रीम कोर्ट के हलफनामे में बताया है कि उनके 2011 के सर्वे में 4.30 लाख जातियों का विवरण जनता ने दिया है। यह बिहार में भी नहीं हो, इसके लिए सभी सावधानियां बरतने की आवश्यकता है।

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