अमृतसर में दशहरा समारोह के दौरान हुए हादसे को लेकर इलाके में विरोध हो रहा है। शनिवार दोपहर गुस्साए लोगों ने शिवाला फाटक के गेटमैन निर्मल सिंह की पिटाई की और उन्हें रेलवे के केबिन (एस-26-ई3) से नीचे फेंक दिया। उनके सिर में गंभीर चोटें आई हैं। उधर, मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह घटना के 16 घंटे बाद अस्पताल में घायलों का हाल जानने पहुंचे। उन्होंने देरी से पहुंचने पर सफाई दी। कहा- ”मैं इजरायल रवाना होने वाला था। हादसे के वक्त दिल्ली एयरपोर्ट पर था। वहां से लौटने में वक्त लग गया।”
इस बीच रावण दहन का आयोजन करने वाली दशहरा कमेटी ने पुलिस की मंजूरी वाला पत्र मीडिया को सौंपा। कमेटी का कहना है कि उसने कार्यक्रम में सुरक्षा मुहैया कराने के लिए पुलिस को पत्र लिखा था। जवाब में सब इंस्पेक्टर दलजीत सिंह ने लिखा था कि पुलिस को इस आयोजन से आपत्ति नहीं है।
70 लोगों की हुई मौत : यह हादसा शुक्रवार शाम अमृतसर के जोड़ा बाजार में हुआ था। रेलवे ट्रैक पर खड़े होकर रावण दहन देख रहे लोग दो ट्रेनों की चपेट में आ गए थे। हादसे में 70 लोगों की मौत हुई है।
4 हफ्ते में तय होगा कि हादसे के जिम्मेदार कौन : मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा, ‘‘सारे पंजाब और हिंदुस्तान की सहानुभुति आज मरने वालों के परिवारों के साथ है। चंडीगढ़ फ्लैग आज आधा झुका रहेगा। इस मामले में जांच जरूरी है। इसलिए हम कमिश्नर के नेतृत्व में मजिस्ट्रेट इंक्वायरी बैठा रहे हैं। जांच रिपोर्ट चार हफ्ते में मांगी गई है। केंद्र सरकार और रेलवे के अलावा हमारी अपनी जांच भी जारी रहेगी।’’ इससे पहले रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने कहा, ‘‘हादसे में रेलवे की चूक नहीं है। रेलवे प्रशासन को इस तरह के आयोजन के बारे में कोई सूचना नहीं दी गई थी।’’
बयानों के मायने न निकालें, सब दुखी हैं : पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने अमृतसर हादसे को कुदरत का प्रकोप बताया था। सिद्धू के बयान को जब पत्रकारों ने आपत्तिजनक बताया तो अमरिंदर ने कहा, ‘‘इस घटना से सब दुखी हैं। उनका कहने का अर्थ कुछ और था। यह समय किसी पर आरोप लगाने का नहीं, सबको साथ आकर इससे निपटने की जरूरत है।’’
हादसे की जगह पर मोड़ था, ड्राइवर की चूक नहीं : सिन्हा
रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने कहा, ‘‘यह हादसा टाला जा सकता था, क्योंकि रेलवे ट्रैक के करीब इस तरह के आयोजन नहीं होने चाहिए। रेलवे फाटक से कुछ ही दूरी पर यह आयोजन हो रहा था। ट्रैक ऊंचाई पर था, इसलिए लोग वहां चढ़कर रावण दहन देख रहे थे। रावण दहन होते ही पटाखों की आवाज आई। तभी भगदड़ मची और लोग ट्रेनों की आवाज नहीं सुन पाए। ड्राइवर को पहले से निर्देश होते हैं कि कहां हॉर्न बजाना है, कहां पर रफ्तार कम करनी है। हादसे के वक्त शाम का समय था। लगभग 7 बज चुके थे। जहां हादसा हुआ, वहां एक मोड़ है। ड्राइवर कैसे देख पाता कि आगे क्या हो रहा है?’’

नवजोत कौर से जुड़े सवाल पर सिन्हा ने कहा- राजनीति नहीं करना चाहता
सिन्हा से रावण दहन के कार्यक्रम में कांग्रेस नेता नवजोत कौर की मौजूदगी और हादसे के तुरंत बाद उनके वहां से चले जाने के आरोपों के बारे में भी पूछा गया। उन्होंने कहा कि मैं इस तरह के संवेदनशील मसलों पर राजनीति से जुड़े प्रश्न नहीं खड़े करना चाहता। स्थानीय लोग जानते हैं कि तथ्य क्या है।
मैदान में तो कुर्सियां खाली पड़ी थीं : कार्यक्रम के दौरान पुतला गिरने के डर से भगदड़ मचने के सवाल पर नवजोत कौर ने कहा, ‘‘धोबी घाट मैदान पर कुर्सियां खाली पड़ी थीं। रावण मजबूती से बांधा गया था। उसके गिरने की कोई गुंजाइश नहीं थी। कोई भगदड़ नहीं मची। 4-5 बार अनाउंसमेंट करके लोगों से धोबी घाट मैदान में आ जाने के लिए कहा गया था।’’
हादसे के 5 जिम्मेदार
आयोजक : कांग्रेस पार्षद विजय मदान के बेटे सौरभ मदान ने कार्यक्रम करवाया था। समिति का दावा है कि उसने अनुमति ली थी, लेकिन लिखित में कोई दस्तावेज नहीं दिखा पाए।
पुलिस : दशहरे को लेकर हाई अलर्ट था। यहां 4 हजार से ज्यादा की भीड़ पहुंचने वाली थी लेकिन पुलिस ने कोई सुरक्षा इंतजाम नहीं किए। चंद पुलिस कर्मियों के सहारे पूरा आयोजन छोड़ दिया।
नवजोत कौर : यहां आयोजन हर साल होता है। शुक्रवार को दहन का समय शाम 5:55 पर था, लेकिन मुख्य अतिथि डॉ. सिद्धू एक घंटे देरी से पहुंचीं। क्योंकि इससे पहले उन्होंने भीड़ देखने पीए को भेजा था। फिर भाषण देने लग गईं। ट्रेन का समय 6:50 था। दोनों ट्रेनें पांच मिनट लेट थीं। यदि समय पर रावण दहन होता तो सबकी जान बच सकती थी। हकीकत यह है कि रावण दहन के 29 सेकंड बाद वहां ट्रेनें आ गईं, जबकि नवजोत कौर दावा करती रहीं कि वे रावण दहन शुरू होते ही घर चली गई थीं।
रेलवे : रेलवे व प्रशासन को पूरी जानकारी थी कि हर साल ट्रैक के किनारे रावण दहन होता है। इसके बाद भी कोई काॅशन नहीं जारी किया था, इसलिए ट्रेनें स्पीड से आईं। ब्रेक लगाने का भी समय नहीं था। गेटमैन भी अलर्ट नहीं था।
सरकार : सूबे के कई जिलों में रेलवे ट्रैक के किनारे बड़े दशहरे के मेले लगते हैं। लुधियाना, संगरूर, मानसा और मोगा में रेलवे लाइन के किनारे रावण दहन होता है। सरकार ने कभी इसका कोई डेटा तैयार नहीं किया और न ही इन आयोजनों के लिए कोई अलग ग्राउंड की व्यवस्था की।
Input : Dainik Bhaskar