दुर्भाग्य है कि आप इस विश्वविद्यालय के छात्र है।
भगवान न करे की आप इस विश्वविद्यालय के छात्र बने।
बिहार का एक जाना माना विश्वविद्यालय है भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय।
हाँ ऐसे तो इस विश्वविद्यालय का नाम भारत के महान व्यक्तित्व और संविधान निर्माता डॉ भीम राव अम्बेडकर के नाम पर है,मगर इस विश्वविद्यालय को न इनके नाम से और न इनके गुण से लेना देना है।
ऐसे तो इस विश्वविद्यालय का ऐतिहासिक गुण चमकता सितारा सा रहा है और देश के कई महान व्यक्तित्व इस विश्वविद्यालय और इस कैम्पस के सटे लंगट सिंह कॉलेज से जुड़े रहे है।
काफी स्वर्णिम भरा इतिहास है इस विश्वविद्यालय और कॉलेज का।
लेकिन आज अफ़सोस की इतिहास का चमकता सितारा वर्तमान में इस विश्वविद्यालय के प्रशाशनिक कुव्यवस्था और इसके नुमांइदे के काली करतूतों के कारण धूमिल हो गया है। हां वर्तमान में यह विश्वविद्यालय राजीनीति आपसी रंजिश और मार पीट के लिए रणक्षेत्र के रूप में काफी प्रसिद्धि पा रही है।
चारो ही चारो तरफ सिर्फ अँधियारा सा है।
इसके कैम्पस में जिंदगी की उजाला ढूंढने की तलाश में लाखों जवानी हर वर्ष परीक्षा व्यवस्था की कुव्यवस्था की बलि चढ़ जाते है।
ऐ अलग बात है कि कई सालों से ऐ जवानियाँ इन कुव्यवस्थाओं की बलि चढ़ती आ रही है ,फिर भी इनको दर्द तक नही हो रहा।
पता नही दर्द सहने की ओ कौन से दवा खा चुकी ऐ जवानी।
ये जवानियाँ अपना सोना जैसा समय को उम्र के कुछ हिस्से से चुराकर इस लिए पढ़ता है ,कि वह भी अपने सपनो और इरादों को पंख दे सके।
मगर यहाँ तो साहब उड़ते चिड़िया का भी पंख काट लिया जाता है ऐन वक्त पर ही जब चिड़िया के मन में उड़ने का इरादा पलता है।
मात्र कुछ नुमाइंदे के कुव्यस्था के कारण हर वर्ष लाखो जवानियाँ बर्बाद हो जाती है।
ऐसे तो ये कई वर्षों से होती आ रही है मगर दिल आज फिर से इस लिए पसिच गया और लिखने पर मजबूर हुआ की दिनांक 21 मार्च 18 से बिहार विश्वविद्यालय मुज़फ़्फ़रपुर में 2 साल के बिलंब के साथ स्नातक पार्ट 3 का परीक्षा होना है
और सभी छात्रों को अभी तक प्रवेश पत्र तक नहीं वितरित हो पाया है।
इससे बड़ा दुर्भाग्य कुछ भी नही हो सकता कि कल से परीक्षा हो और उसकी पूर्व संध्या पर परीक्षा देने वाले ही छात्र धरने पर बैठो हो ओ भी अपने प्रवेश पत्र के लिए।
और छात्र संगठन विएसएस के दवाब पर जब विश्वविद्यालय को कोई चारा न मिला तो आधी रात को तीन बार डेट टाल चुकी विश्वविद्यालय फिर से एक बार परीक्षा की पहली तिथि रद्द कर देती है ।
तभी सहसा एक पंक्ति निकला जाती है।
परीक्षा और डेट का मजा लीजिये,
थोड़ाइंतेजार का मजा लीजिये।
इस विश्वविविद्यालय में आप तेज या बुरबक है इससे कोई मतलब नहीं आपका रिजल्ट लेट से ही सही अगर सही सलामत आ गया तो आप तेज नही बल्कि समझिये की आप किस्मत वाले है।
जिस जवानी में टैलेंट कुछ नया नया खोजती है,ढूंढती है पढ़ती है कॉलेज के एक एक ईंट से।विश्वविद्यालय और कॉलेजो में अपने स्वर्णिम जिंदगी की तलाश करती है,ओ उम्र तो चली जाती है परीक्षा की तिथि ढूढने में और उसका इंतेजार करने में।
कितना दिल कचोटता होगा उसका जिसको ऐ पता चलता होगा की दूसरे राज्य में उसके साथ ही वर्ष में नामंकन लेने वाले का स्नातक तीन साल में पूरा हो गया और उसे पांच साल होने वाले है और ओ भी सही सलामत निकल जाएंगे या नही उसका भी भरोशा नही है।
सोचिये क्या गुजरता होगा उस छात्र पर जब वह अपने जॉब के लिए किसी इंटरव्यू में अपना प्रमाण पत्र दिखाता होगा और उससे यह सवाल किया जाता होगा की तीन वर्ष वाले स्नातक में आपको पांच साल कैसे लग गया,कही फर्जी तो नही।उसके टैलेंट को भी शक के निगाह से देखा जाने लगता है।
अभी हाल में ही यहाँ छात्र संघ का चुनाव हुआ है सभी छात्र संगठनों ने इन्ही सब मुद्दों का व्यापार कर वोट ख़रीदा है।ऐसे ऐ सभी आजतक तो कुछ नही ही कर पाए मगर आशा और उम्मीद करते है कि राजनीती के ही बहाने कही कुछ बदलने की कोशिश करे तो शायद कुछ बदलाव हो और जवानी के सूखे पेड़ में कुछ उम्मीदों का फूल खिले।
कुछ सवाल युवा साथियो से भी है कि आपके युवा शक्ति के नाम पर सैंकड़ो छात्र संगठन और राजनीति संगठन कई वर्षों से राजनीती करती आ रही है और आपका राजीनीति इस्तेमाल भी करती आ रही है।
मगर युवाओ को समर्पित ऐ सभी संगठन युवाओ की आंखोदेखी बर्बादी पर वर्षो खामोश रह जाती है।
कभी फुर्सत मिले तो सवाल कीजियेगा इनसे की राजीनीति की धरती रही मुज़फ़्फ़रपुर में युवाओ का इतना बुरा हाल क्यों है।आखिर इनका काम क्या है सिर्फ राजनीती बैठके करना और नेताओं का प्रचार प्रसार करना।
थोड़ा सोचियेगा जिस नेताओ के लिए आप इतना कर रहे है ओ पार्टी या नेता आपके कैरियर के लिए क्या कर रही है।
सोचिये जब ऐ जवानी पढ़ लिख खुद अपना जवानी बर्बाद होने से नही बचा सकती तो फिर पढ़ लिख कर दुसरो के लिए कुछ करने की बात कल्पना मात्र है।
अगर इसी तरह जवानियाँ बर्बाद होती रही कुव्यवस्थाओं के जाल में तो फिर कैसे हम युवा भारत की स्वर्णिम भविष्य की कल्पना कर सकते है।
ऐसे तो ऐ कहानी बिहार के लगभग लगभग सभी विश्वविद्यालय की है और सभी विभागों की परीक्षा व्यवस्था की,इसलिये इसे आप पूरे बिहार की कहानी समझ भी पढ़ सकते है।
अगर अनुभव का जल और छिड़के तो यह आलेख काफी लंबा हो जाएगा ,आज इतना ही फिर कभी।तब तक इस इस तालाब रूपी आलेख के शब्द रूपी जल से नहाकर कुछ सोचिये।
फिर दूसरी कड़ी में बात करेंगे इससे जुड़ी अन्य समस्यायों पर,
तब तक आपके बीच एक सवाल छोड़ जाता हू।
की आखिर इन सबका जिम्मेदार कौन है?और ऐसा कब तक चलता रहेगा?
नोटःमेरा उद्देश्य इस विश्वविद्यालय के स्वाभिमान पर चोट करना कतई नही है,मगर स्वाभिमान के नाम पर सच रूपी दर्द को कब तक दबाकर युवाओ के भविष्य को हम मौत के कुएं में धकेलते रहेंगे।
संत राज़ बिहारी की कलम से
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