देश की आजादी को वर्षों बीत गए लेकिन गाहे-बगाहे जिन्‍ना का जिन जाग जाता है। पहले इस पर उस वक्‍त बवाल हुआ था जब भाजपा के वरिष्‍ठ नेता लाल कृष्‍ण आडवाणी ने पाकिस्‍तान जाकर जिन्‍ना की मजार पर फूल चढ़ाए थे। अब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दशकों से लगी जिन्‍ना की तस्‍वीर पर बवाल मचा है। आलम ये है कि इस बवाल पर काबू पाने के लिए पुलिस बुलानी पड़ी और इंटरनेट सेवा बंद कर देनी पड़ी। लेकिन जिन्‍ना के ऊपर शुरू हुआ बवाल अब तक ठंडा नहीं पड़ा है।

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क्या है पूरा मामला

विवाद की शुरुआत अलीगढ़ से भाजपा सांसद सतीश गौतम ने AMU के कुलपति तारिक मंसूर को लिखे अपने पत्र में विश्वविद्यालय छात्रसंघ के कार्यालय की दीवारों पर पाकिस्तान के संस्थापक की तस्वीर लगे होने पर आपत्ति जताई थी। विश्वविद्यालय के प्रवक्ता शाफे किदवई ने दशकों से लटकी जिन्ना की तस्वीर का बचाव किया और कहा कि जिन्ना विश्वविद्यालय के संस्थापक सदस्य थे और उन्हें छात्रसंघ की आजीवन सदस्यता दी गई थी। इतना ही नहीं इस बवाल ने उस वक्‍त और तूल पकड़ लिया जब योगी सरकार के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने जिन्ना को देश की आजादी में योगदान देने वाला महापुरुष करार दिया।

Muhammad Ali Jinnah

पाकिस्‍तान के काइदे-आजम 

बहरहाल, पाकिस्‍तान में काइदे-आजम के नाम से मशहूर मोहम्‍मद अली जिन्‍ना का जिक्र आते ही देश के बंटवारे का ख्‍याल आना लाजमी है। देश के बंटवारे की सबसे पहली और आखिरी वजह भी वही थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वह 1947 में भारत के बंटवारे से तीन दशक पहले कुछ और थे। लेकिन देश की कमान संभालने के नाम पर उन्‍होंने अलग देश की मांग कर डाली और इसकी वजह से देश का बंटवारा हुआ। हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि एक समय वो भी था जब अंग्रेजों को देश से बाहर फेंकने के लिए उन्‍होंने दूसरे स्‍वतंत्रता से‍नानियों की ही तरह कदम से कदम मिलाया था और संघर्ष किया था। इसमें कांग्रेस के जिस नेता से जिन्ना सबसे ज्यादा प्रभावित थे, वो थे लोकमान्य बालगंगाधर तिलक थे। जब क्रांतिकारी खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी की फांसी की सजा हुई तो तिलक ने अपने अखबार केसरी में तुरंत स्वराज की मांग उठाई थी।

तिलक के बने वकील

इस पर अंग्रेजों ने तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। उस वक्‍त तिलक के वकील के तौर पर जिन्‍ना ने ही उनका मुकदमा लड़ा था। यह बात और है कि अग्रेंजों के सामने उनकी दलील नहीं चली और तिलक को राजद्रोह के मामले में छह साल की जेल की सजा सुनाई गई। तिलक को इसके बाद म्यांमार के मांडले जेल में 1908 से 1914 तक रहना पड़ा था। इसके बाद भी तिलक के ऊपर अंग्रेजों ने राजद्रोह का मुकदमा दायर कर मामला चलाया था। इस बार भी जिन्‍ना ही उनके वकील बने थे, लेकिन इस बार उन्‍हें जीत मिली थी। जिन्‍ना और तिलक के बीच काफी घनिष्‍ठ संबंध थे। 1916 में ही दोनों के बीच तिलक-जिन्ना समझौता हुआ। इसमें ये फैसला हुआ कि हिंदू मुस्लिम एकता के लिए दोनों कौम पूरी ताकत झोंकेंगी और उसी ताकत के साथ अंग्रेजों का मुकाबला करेंगी। लेकिन 1920 में तिलक की मृत्यु हो गई और जिन्ना धीरे धीरे कांग्रेस की राजनीति से दूर होते चले गए।

जिन्ना ने खींची बंटवारे की लकीर

1930 के दौर में ही मुस्लिम लीग के बड़े नेताओं चौधरी रहमत अली, अल्लामा इकबाल और आगा खान ने जिन्ना से बार बार गुहार लगाई कि वो भारत लौटें और मुस्लिम लीग को लामबंद करके इसकी बागडोर संभालें। 1934 में जिन्ना भारत लौटे। 1937 में हुए सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली के चुनाव में मुस्लिम लीग ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी और मुस्लिम क्षेत्रों की ज्यादातर सीटों पर कब्जा कर लिया। हालांकि इस चुनाव में मुस्लिम बहुल पंजाब, सिन्ध और पश्चिमोत्तर सीमान्त प्रान्त में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा। इस जीत के बाद जिन्ना ने कांग्रेस से गठबंधन का प्रस्ताव रखा, लेकिन इस शर्त के साथ कि मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र होंगे। साथ ही मुसलमानों की प्रतिनिधि मुस्लिम लीग होगी। लेकिन कांग्रेस को ये मंजूर नहीं था। कांग्रेस के तमाम मुस्लिम नेता ही जिन्ना का विरोध कर रहे थे। लेकिन जिन्ना को ये मंजूर नहीं था । 1936 में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मानसिक बंटवारे की लकीर जिन्ना ने ही खींची थी। इसके दो साल बाद अलीगढ़ यूनिवर्सिटी की इस दरोदीवार पर ये तस्वीर लगा दी गई। इसके करीब नौ वर्ष बाद भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली और पाकिस्‍तान एक आजाद देश के रूप में दुनिया के सामने आया।

 

 

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