सूचना का अधिकार कानून (आरटीआइ) से जो उम्मीदें जगी थीं, वो बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में पूरी होती नहीं दिखाई दे रही हैं। लचर व्यवस्था व मनमानी से छात्रों की उम्मीदें टूट रही हैं। सत्र विलंब और पेंडिंग रिजल्ट के तरह आरटीआइ के तहत मांगी जानेवाली सूचनाओं के जवाब देने में भी विश्वविद्यालय पिछड़ रहा है। अधिकतम समय सीमा के बाद भी उनके सवालों के जवाब नहीं मिल रहे हैं। आरटीआइ के बाद कुछ छात्र उत्तीर्ण भी हुए हैं। बहरहाल, आम छात्रों को दिए गए अधिकारों पर भी यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट ढ़ुलमुल रवैया अपनाता है तो उनके भविष्य की जिम्मेदारी कौन लेगा?
छात्र-छात्रओं ने सुनाई आपबीती : आरएस कॉलेज से बीकॉम पार्ट वन की छात्र लक्ष्मी कुमारी 2 नंबर से प्रमोट होने पर अपनी कॉपी देखने के लिए आरटीआइ लगाई है। आरबीबीएम कॉलेज के जूलॉजी ऑनर्स पार्ट वन की छात्र शिल्पी कुमारी कहती हैं कि रसायन उनका ऐच्छिक विषय है, जिसमें दो-दो बार परीक्षा दी हैं और दोनों ही बार उन्हें दो नंबर ही आए। उन्हें इस पर संदेह है। बेतिया एमजेके कॉलेज से भौतिक प्रतिष्ठा पार्ट टू के छात्र मनराजन कुमार दुबे एक नंबर से प्रमोट हैं तो उनके दोस्त अमित गिरि 2-3 नंबरों से प्रमोट किए गए हैं। साइकोलॉजी से पीजी की छात्र प्रीति कुमारी का कहना है कि उन्हें दो बार 21 नंबर ही मिले हैं। सेकेंड सेमेस्टर की परीक्षा के लिए फार्म भरने की आखिरी तिथि 31 मार्च ही है। ऐसे में उनका भविष्य दांव पर लगा है। आरडीएस कॉलेज से 2015-17 बैच के साइकोलॉजी के छात्र जितेंद्र कुमार का कहना है कि फस्र्ट, सेकेंड व थर्ड तीनों ही सेमेस्टर में उन्हें शून्य नंबर दिए गए हैं। छात्रों का कहना था कि उनकी परीक्षा बहुत अच्छी हुई है, लेकिन उन्हें फेल कर दिया गया है। अब नियमों का हवाला देते हुए आरटीआइ डालने या फिर से उसी क्लास में पढ़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
आरटीआइ में खर्च होते 300 रुपये : कई छात्रों ने सूचना का अधिकार के तहत अपनी उत्तर पुस्तिकाओं को देखने के लिए आवेदन किया। करीब दो महीने हो जाने के बाद भी यूनिवर्सिटी की ओर से कोई जानकारी नहीं दी गई। आवेदन देने के 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए। यदि सूचना न मिले या प्राप्त सूचना से कोई संतुष्ट न हो तो अपीलीय प्राधिकार के पास जाने का विकल्प भी है, लेकिन छात्रों के पास इतने पैसे कहां से आएंगे। विश्वविद्यालय में ही 300 रुपये खर्च कर आरटीआइ लगाते हैं। अब आगे के लिए उनके पास कहां से पैसे आएं।
उपेक्षा
सत्र विलंब और पेंडिंग रिजल्ट की तरह सूचना का अधिकार कानून का हाल
आरटीआइ के तहत सिर्फ कॉपी दिखाई जा सकती है। नंबर नहीं बदले जा सकते। यह सही है कि जवाब देने में थोड़ा विलंब हो रहा है। दरअसल, आरटीआइ सेक्शन में स्टॉफ की कमी से ऐसा हो रहा हे।1डॉ. ओपी रमण, परीक्षा नियंत्रकछात्र हम ने दी आंदोलन की चेतावनी1छात्र हम के विवि अध्यक्ष संकेत मिश्र ने कहा कि यूनिवर्सिटी के पास कॉपियां उपलब्ध ही नहीं हैं। इसी कारण पहले यूनिवर्सिटी ने अपने मन-मुताबिक नंबर देकर फेल कर दिया और अब कॉपियां दिखाने में आनाकानी कर रही है। वह ऐसा क्यों कर रही है यह एक बड़ा सवाल है। हम छात्र संगठन इसके खिलाफ आंदोलन करेगा।
2 नंबर से प्रमोट होने पर आरएस कॉलेज की लक्ष्मी कुमारी ने लगाई आरटीआइ
Input : Dainik Jagran