आखिर कब तक हम और आप आँख मुंद कर इस भीड़ का हिस्सा बनते रहेंगे।
क्या शक्ति प्रदर्शन जरुरी है?
मैं जानता हूं कि जिस विषय पर मै लिखने जा रहा हूँ, उसपर काफी आलोचना होगी, मगर सच को लिखना भीं जरुरी है और देर से ही सही इस पर सोचना भी जरुरी है।
बचा लीजिए देश को जलने से, टूटने से, आज भी आप ही लोगो पर यह देश निर्भर है।
हर किसी का विचारधारा थोपने का रास्ता एक ही होगा तो फिर क्या होगा समाज का।
क्या आप भी उसी भीड़ का हिस्सा बनने जा रहे है जो हमेशा समाज को तोड़ता रहा है और जिसका आपने हमेशा विरोध किया है।
क्या हम मानसिक रूप से इतने अंधे हो गए है कि अपनी सोचने की सारी शक्ति को क्षीण कर दिया है।
क्या हम इतने मुर्ख हो गए है कि सिर्फ सोसल मिडिया के वायरल मुद्दे पे जो कभी भी तर्कपूर्ण नही होता उसके लिए भारत बंद पर उतर गए।क्या आपको यह आसान शब्द लगता है।
आप क्या करने जा रहे है आपको पता भी है।आप खुद को हिन्दुत्व का चेहरा बनते है और आज अपने ही हिन्दू भाई के एक विशेष जाती के विरोध में चले गये।
अभी तक उनके मन में जो आपके प्रति नफरत का भाव चल रहा था असल में आप आज उसे सत्यापित करने जा रहे है।
याद रखियेगा ऐ देश तोड़ने वाली शक्तियों का बहुत बड़ा साज़िश है आखिर आपको सोचना चाहिए की जो मुद्दा कल्पना में सोच ले तो असम्भव है।आप उस मुद्दे पर बात करके सिर्फ अपनों में टूट सकते है बाद बाकी कुछ भी नहीं हो सकता।
आप इतना ही सोचिये की सिर्फ एक ऐक्ट पे बात हुई तो पूरा देश जल गया और जब आरक्षण खत्म की बात होगी तो क्या होगा?
अभी हमारा एक विशेष समाज या देश इतना मजबूत नही हुआ जहाँ आरक्षण खत्म करने की बात सोची जाए।
हम और आप एक बहुत राजनीती साजिस में फसते जा रहे है जहाँ सिर्फ आम जनता की भाईचारा की ही बलि चढ़ेगी।समाज में नफरतो का सिलसिला बढ़ जायेगा।
यह बात उन दलितों पिछड़ो में अच्छी तरह से बैठ जाएगा कि आप वास्तव में उनसे नफरत करते है।
अगर करना ही है तो आप जातिवाद का विरोध कीजिये न जो समाज को नफरत की खाई की और ले जा रहा है।

आखिर जो संभव है ओ हम ओ क्यों नही करते ऐ जो सभी पार्टियां संविधानिक शक्ति से इतर होकर हर कोई अलग अलग जाती के लिए अलग अलग मंच बना रखा है और अपने पार्टी के लोगों को भी जातिवाद में बाटकर सिर्फ उसका राजनीति फायदा उठा रहे है।
अब देख लीजिए आपको हर पार्टी में एक लग दलित मंच मिलेगा,अनुसूचित जाति मंच, पिछड़ा एवं अतिपिछड़ा मंच,अल्पसंख्यक मंच,सवर्ण कल्याण मंच।
आखिर ऐ सब क्या है आखिर पहले हम इन सबको क्यों नही खत्म करते।ऐ तो हम आसानी से खत्म कर सकते है न क्योकि इसमें कोई संवैधानिक बाधा नह है इसे हमहि ने और हमारे राजनीति पार्टियों ने बनाया है।
आखिर इन सब विषैले जहर को राजीनीति पार्टिया क्यों नही खत्म कर रही जो समाज को विभाजित करने का काम कर रही है एक ही पार्टी में अलग अलग जाती अनुसार विचारधारा क्या यह समाज को तोड़ने की साजिश नही है।
बात थोड़ी लिक से हटकर है मगर सोचना तो होगा आपको।नही तो ऐ नेता लोग आपको भी उसी तरह मानसिक गुलाम बना देंगे और आप पढ़ लिखकर भी इन अनपढों और जाहिल नेताओ के बात पर अपनी सोचनशक्ति खोते रहेंगे।
चलिये अब आते है आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात पर।
क्या आर्थिक आधार पर आरक्षण संभव है?अगर है तो क्या इसका कोई प्रपोजल है किसी के पास या सिर्फ आंख मूंद कर हम समझ रहे और हर किसी को समझा रहे है?
क्या अभी तक किसी ने यह प्रपोजल बनाया या आपको समझाया कि यह कैसे होगा और किस तरह इसका क्रियान्वयन होगा और किस पर लागू होगा।
या आप सिर्फ इस मुद्दे को उठाकर आरक्षण का लाभ ले रहे एक विशेष समुदाय के प्रति नफरत का भाव पाल रहे है।
ऐसा नही है कि यह पहली बार हो रहा है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात कही जा रही है,जिस समय संविधान बन रहा था और आरक्षण नीति पर चर्चा चल रही थी तब भी आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात की चली थी और काफी चर्चा और बहस के वावजूद भी यह निष्कर्ष निकला की आर्थिक स्थिति कभी भी किसी का स्थायी नहीं रहता।
आज कोई पैसे से सम्पन्न है इसका मतलब यह नही की कल भी उसकी स्थिति वही रहेगी।
आर्थिक स्थिति हमेशा सबकी बदलती रहती है।
कही न कही उस समय के आरक्षण नीति के पीछे भी आर्थिक आधार का आंशिक हिस्सा था ही लेकिन उस समय एक विशेष जाती समुदाय की आर्थिक स्थिति देखी गई की कुछ विशेष जाती और समुदाय ही है जो काफी पिछड़े थे।
मगर सच ये भी है कि आरक्षण नीति के बावजूद भी भारत के दलित और पिछड़ो के हालात में विशेष अंतर नहीं आया।यही कारण है कि आरक्षण जैसे मुद्दे पर पूरा देश संवेदनशील हो जाता है।
कुछ तो गरबर हो रहा है साथियो।हमें रुकना होगा, सोचना होगा।
ऐसे अपने अपने मतलब से यह देश नही चल सकता साथियो।हर किसी न किसी को हर किसी की जरुरत है।
जो नही हो सकता इस पर अपनी भाईचारा का बलि न चढ़ाइये।
युवा पत्रकार संत राज़ बिहारी की कलम से।