एक बार फिर से जाती वाली कार्ड खेल गये नीतीश बाबु।क्या एससी एसटी वाले नैया पर सवार होकर पार लगा पाएंगे नीतीश बाबु।

कहते है न भैस के आगे बीन बजाये और भैंस रहे पघुराये।

आजकल भैस वाली स्थिती इन नेताओं लोग की हो गई है।इनके आगे जनता कितना भी अधिकार वाला बीन बजा ले इन्हें कोई फर्क नही पड़ने वाला।
अभी हाल ही में इस देश के करोड़ो यूवा सड़क पर आये थे इस मांग को लेकर की आरक्षण का आधार गरीबी हो और खासकर शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में मेधा की वरीयता हो न की जाती के आधार पर।इस आंदोलन ने देश में एक नयी विचार लाने का कार्य किया और बहस का मुद्दा भी बना।मगर इन सबसे नेताओ को क्या फर्क पड़ता है उन्हें तो वही करना है जो उनकी राजनीती महत्वाकांक्षा में लाभ पहुंचा सके।

इन सब मामलों में हमारे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश बाबु अपने आप में अव्वल स्थान रखते है।सारी दुनिया एक तरफ और हम्मर नीतीश बाबु एक तरफ।उधर सारा देश जातीयता आधार पर आरक्षण का विरोध कर रहा था और जातीयता जैसे समाज की कुरीतियों को खत्म कर एक नई समाज की कल्पना कर रहा था।
तो इधर नीतीश बाबु लगले घोषणा करते है कि एससी में जो पासवान जाती है उसे महादलित कर दिया जाए।
आरक्षण हटाने वाले को एक जोरदार झटका लगता है नीतीश बाबु द्वारा।

सुनके काफी अच्छा लगा की चलिये एक ही जात के लोग बचे थे जो अभी दलित ही थे अब ओ भी महादलित हो गए है।भाई ऐसे भी दलित काहे कोई रहेगा जब रहना ही तो महादलित रहेगा।नाम के सिवा तो ऐसे भी कुछ मिलना है नहीं।कब से कम महादलित तो रहेंगे न।

हमने पिछले सालों में नीतीश बाबु के शासन में यह देखा है कि जितना नितीश बाबु ने जातीयता को तोड़कर जो जात पात की राजनीति की है शायद कोई और नेता ने ऐसा किया हो।कभी कोइरी में से दांगी निकाल कर उसे अत्यंत पिछड़ा वर्ग बना देते है तो कभी लुहार को एसटी में कर देते है कभी तेली को अत्यंत पिछड़ा वर्ग में घुसा देते है।इन्होंने ने जातीयता एकता को विखंडित करने का काम किया है।

पता नही इस वोट बैंक की राजनीती में नीतीश बाबु ने बिहार के समाज को किस गर्त में ले गए है।

आज तो नीतीश बाबु ने हद ही कर दी।पता नही इस खबर को पढ़के कितने युवा साथियो को सदमा पंहुचा होगा।उन्हें लगा होगा की शायद एससी एसटी होना ही वरदान है बाकी सब अभिशाप।आज नीतीश बाबु ने कैबिनेट में एक फैसला पास किया जिसमें बीपीएससी और यूपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा में सफल होने वाले एससी, एसटी छात्रों को क्रमशः 50000 और 1 लाख की प्रोत्साहन राशि देगी सरकार और सरकारी छात्रावास में रहने वाले एससी, एसटी छात्रों को 1 हज़ार की अनुदान राशि हर महीने साथ ही अनाज भी देगी सरकार।

हमे इन फैसलों से कोई आपत्ति नही है बहुत ही अच्छा फैसला है हम इन फैसलों का बखूबी सम्मान करते है और बधाई भी देते है नीतीश सरकार को।
मगर सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर मेधावी छात्रों को प्रोत्साहन राशि देने की बात की जा रही है तो फिर उन सभी मेधावी छात्रों को क्यों नही जो आर्थिक रूप से गरीब है।

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मान लेते है कि आरक्षण तत्काल खत्म करने जैसा मुद्दा नही है मगर इस तरह के प्रोत्साहन राशि में तो सरकार को जाती नही बल्कि आर्थिक स्थिति का आधार देखना चाहिये था।ऐसा नही है कि यह आइडिया बहुत ही पेचीदा है यह संभव है।

क्या हर जाती में गरीब छात्र नहीं है जिन्हे इन सिविल सेवाओ के तैयारी के लिए प्रोत्साहन राशि दी जाये।
मगर साहब ऐसा करे तो क्यों करे यहाँ तो चुनावी बिगुल बज चूका है ।और चुनाव में आजकल दलित अल्पसंख्यक कार्ड बग़ैरह बहुत ही काम कर रहा है।
और नीतीश बाबु राजनीती दाव के बहुत ही पुराने खिलाड़ी रहे है उन्हें अच्छी तरह पता है कि बिहार की राजनीती की नस कहा से दबती है।इसलिए चुनावी बुखार आने से पहले ही नस पर हाथ दबा दिया है।आखिर कब तक बिहार के छात्र इन नेताओं के जाती वाले चक्की में पिसते रहेंगे

मगर अब देखना यह दिलचस्प होगा कि नीतीश बाबु ई एससी एसटी वाले नैया पर सवार होकर कहा तक बेड़ा पार लगाते है।साथ यह भी देखना दिलचस्प होगा की इतने बड़े ऑफर के बाद भी एससी एसटी के छात्र कितना इस ऑफर का लाभ उठा पाते है।

युवा पत्रकार संत राज़ बिहारी की कलम से।

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