यूपी के गाजीपुर जिला के रहने वाले सिद्धार्थ राय ने 2012 में अपना एमबीए पूरा किया। जिसमे उन्हे गोल्ड मेडल मिला और एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में कैंपस प्लेसमेंट भी हो गया। प्लेसमेंट के 2 वर्ष के बाद रेलवे भवन मे रेगुलर जॉब लग गई। अच्छी खासी सैलरी वाली नौकरी और वेल सेटल्ड लाइफ होने के बावजूद सिद्धार्थ राय को यह काम नहीं जमा और सुकून की तलाश मे वे अपने गाँव आकार कुछ करने की सोचा।

5 साल बाद नौकरी छोड़ गाँव लौटे
सिद्धार्थ 5 साल बाद अपनी नौकरी छोड़ गाँव लौट आए। और यहाँ अपनी बंजर पड़ी जमीन पर एक तालाब खुदवाया और दो गाय भी पाल लीं। सिद्धार्थ का नौकरी छोड़ किसानो वाला कम देख उनके गाँव वालों ने खूब मजाक। साथ हीं परिवार वालों ने भी विरोध किया कि गोल्ड मेडलिस्ट बेटा गोबर उठा कर उनकी इज्जत खराब कर रहा हैं, लेकिन सिद्धार्थ तो बदलाव की एक अलग हीं कहानी बुन रहे थे, वो भला कहाँ पीछे हटने वाले थे।
बंजर जमीन को एक नए गाँव मे तब्दील कर दिया
सिद्धार्थ राय ने अपनी बंजर जमीन को एक नए गाँव के रूप मे तब्दील कर दिया हैं। एक ऐसा सुंदर गाँव जहाँ लाखों की कमाई भी होती हैं के साथ रोजगार ,सेवा और सुकून हैं। यहाँ पर लोग दूर-दूर से हॉलिडे मनाने भी आते हैं और वेडिंग डेस्टिनेशन के लिए भी एडवांस बुकिंग होती है।
सिद्धार्थ के सफर के बारे में जाने
सिद्धार्थ राय एक मिडिल क्लास परिवार से ताल्लुक रखते हैं। काफी साल पहले उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद उनकी माँ ने ही परिवार संभालने के साथ सिद्धार्थ को खूब पढ़ाया-लिखाया और बड़े मुकाम तक पहुंचाया।
2019 मे छोड़ी थी नौकरी
सिद्धार्थ ने बताया कि मेरे पास एक अच्छी नौकरी थी। और घर के लोग भी काफी ज्यादा खुश थे, लेकिन मुझे लगता था कि सिर्फ पैसा कमाना और अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाना ही जीवन मे काफी नही हैं । जब तक की हमारे काम से किसी दूसरे का भला नहीं होगा, बदलाव नहीं होगा, तब तक जिंदगी को असली मकसद नहीं मिलेगा। उसी सुकून व मकसद की तलाश मे मैंने 2019 मे अपनी नौकरी छोड़ दी और गाँव मे आ गया।
गाँव के लोगो ने मज़ाक उड़ाया और पागल कहा
गाँव आने के बाद सिद्धार्थ ने जमीन के छोटे से हिस्से में एक तालाब खुदवाया और उसमे कुछ मछलियां डाल दीं. और बगल मे एक झोपड़ी बनाई और दो गाय उसमे बांध दी। इसके बाद शुरू हुआ उनका विरोध और संघर्ष का सिलसिला। घर-परिवार और गांव के लोग कहने लगे कि ये पागल हो गया हैं. इतनी अच्छी ख़ासी नौकरी छोड़कर गोबर उठा रहा हैं। इसके दिमाग में गोबर भर गया हैं । लेकिन सिद्धार्थ को इन सब बाटो से फर्क नहीं पड़ा। क्योंकि उन्हें पता था कि वो क्या कर रहे हैं और आगे अपने इस काम को कैसे बढ़ाना हैं।
मछली के साथ बतख पालन भी शुरू किया
सिद्धार्थ ने बताया मुझे रियलाइज हुआ कि तालाब मे सिर्फ मछली पालन से हीं काम नहीं चलेगा। इसमें कुछ और भी करना पड़ेगा। और उनके दिमाग मे बत्तख पालने का आइडिया आया। इसके पीछे उनकी सोच यह थी कि बतख के अंडों से कमाई भी अच्छी होगी व तलब की पानी भी साफ रहेगा। साथ ही बत्तखो का वेस्ट से मछलियों का भोजन भी हो जाएगा। यानी अधिक पैसे खर्च नहीं करने पड़ेंगे। इस आइडिया के बाद उन्होंने अपने तालाब में कई सारे बत्तख पाल लिए। जिसका फायदा भी हुआ और उनकी कमाई में अच्छा खासा इजाफा हुआ।
कोरोना काल मे नया अवसर ढूंढ निकाला
सिद्धार्थ का पहला साल काफी अच्छा रहा। उनके तालाब मे मछली और बत्तख तो थे ही, साथ ही गायों की संख्या भी बढ़ गई थी। इससे उनका रेगुलर इनकम हो रही थी। लेकिन इसी बीच कोरोना वायरस आ धमका और अचानक से सब कुछ ठप हो गया।
वे बताते हैं की उस समय कुछ दिनों तक तो मैं बहुत परेशान रहा, लेकिन फिर आपदा मे एक नया अवसर ढूंढ लिया। उस समय लोग कोरोना संक्रमण के डर से बाहर से खाने-पीने की चीजें मंगाने से परहेज कर रहे थे। खास कर दूध। क्योंकि बिना कॉन्टैक्ट के घर-घर मे दूध पहुंचाना काफी मुश्किल हो गया था। लेकिन इस परेशानी को दूर करने के लिए वे कांच की बॉटल में दूध पैक करके लोगो को होम डिलीवरी करना शुरू कर दी।
दूध के होम डिलीवरी सफल रहा
सिद्धार्थ का यह होम डिलीवरी का आइडिया चल गया। और उनके ग्राहक बढ़ने लगे। इसके बाद उन्होंने भी अपने इस बिजनेस का दायरा बढ़ा दिया। अब वे खुद की गायों के दूध के अलावा दूसरे किसानों से भी दूध कलेक्ट करना शुरू कर दिये। इससे उनकी कमाई तो बढ़ी ही, साथ ही कई सारे किसानों को भी कोरोना काल के उस कठिन दौर में रेगुलर इनकम होने लगी। सिद्धार्थ के पास अभी 18 गाय हैं, जबकि 122 से ज्यादा किसान उनसे जुड़े गए हैं। अब वे हर दिन सैकड़ों लीटर दूध की मार्केटिंग करते हैं।
गाँव को फेवरेट डेस्टिनेशन मे बदला
सिद्धार्थ बताते हैं कि मुझे पहले से पशुओं से काफी ज्यादा लगाव था। गाय,मछली और बत्तख के बाद मैंने बकरी, घोड़ा और ऊंट भी रख लिए। और इसका असर ये हुआ कि कई सारे लोग अपनी छुट्टियां मनाने के लिए हमारे यहाँ आने लगे। यहाँ पर कोई मछलियों और बत्तखों को दाना खिलाने लगा तो कोई घुड़सवारी करने लगा। मुझे लगा कि इसमें भी कमाई का अच्छा खासा स्कोप हैं। इसके बाद मैंने हर चीज का टिकट और रेट तय कर दिया। जैसे-जैसे लोगों को इसके बारे में जानकारी होती गई, अलग-अलग जगहों से लोगों का यहाँ आना शुरू हो गया। तब मेरे मन मे थोड़ी और लालच आई और आइडिया आया कि इस जगह को लोगो के लिए फेवरेट डेस्टिनेशन में बदला जा सकता हैं।
वेडिंग डेस्टिनेशन के साथ बर्थडे सेलिब्रेशन भी उनके गाँव मे होने लगा
सिद्धार्थ ने अपने तालाब के बीच में एक मचान बनवाया और उसे अच्छे से सजा दिया। जिससे लोगों के लिए यह एक तरह से सेलिब्रेशन पॉइंट बन गया। अब किसी को बर्थडे या एनिवर्सरी मनानी हो तो वे सब यहाँ आने लगे, क्योंकि तालाब और हरियाली के बीच रात का नजारा ही कुछ अलग हीं शानदार हो जाता हैं। और वे कहते हैं की, कुछ सालों से वेडिंग डेस्टिनेशन देश मे काफी ट्रेंड में हैं। बड़े शहरों के लोग अब होटल या मैरिज गार्डन से निकलकर पहाड़ों की वादियो या जंगलों में शादी करने जा रहे हैं। और उन्हे लगा कि हम यहाँ भी उस तरह का वेडिंग डेस्टिनेशन बना सकते हैं।इसके बाद वे तालाब के बगल में ही एक वेडिंग डेस्टिनेशन बनवा दिया। सबसे खास बात यह रही कि इसमें ईंट या सीमेंट का इस्तेमाल किए बिना हीं बनाया गया हैं । जिससे ये पूरी तरह से नेचुरल हैं।
कई सारी शादियाँ करा चुके हैं
सिद्धार्थ इस शादी सीजन में कई शादियां यहाँ पर करा चुके हैं। अब तो इसके लिए उनसे एडवांस बुकिंग की जाती हैं और देश के अलग-अलग राज्यों से लोग यहाँ लोग आते हैं और अपनी वेडिंग करते हैं।जिससे उन्हे अच्छी खासी आमदनी हो जाती हैं।
नेचुरल रेस्टोरेंट भी खोला
उन्होंने यहाँ एक नेचुरल रेस्टोरेंट भी खोला हैं। जहाँ वे ऑर्गेनिक तरीके से खाना को तैयार करते हैं। इस रेस्टोरेंट मे दूर-दूर से लोग खाना खाने आते हैं। और इससे निकलने वाले वेस्ट खानो का इस्तेमाल वे बत्तख और मछलियों के लिए भोजन के रूप मे करते हैं।
2 बीघा जमीन को गाँव के रूप मे तब्दील कर दिया हैं
सिद्धार्थ ने अपने 2 बीघा जमीन को एक शानदार गाँव के रूप में तब्दील कर दिया हैं। और इसका नाम उन्होंने खुरपी रखा हैं। इस गाँव मे ही उनकी ये सारी सुविधाएं मौजूद हैं। इस शानदार गाँव मे आने के लिए भी लोगो को एंट्री फीस देनी पड़ती हैं ।
लोगो की सेवा भी खूब करते हैं
सिद्धार्थ एक साइड से शानदार बिजनेस करते हैं तो वहीं दूसरी साइड से गरीबो की सेवा भी शिद्दत से करते हैं। उन्होने बेसहारा लोगों को लिए एक प्रभु का घर बनाया हैं। जिसमे गरीब बुजुर्ग और अनाथ बच्चे रहते हैं। यहाँ पर उनकी हर तरह से देखभाल की जाती हैं।
हर दिन 500 लोगो को कराते हैं भोजन
सिद्धार्थ ने प्रभु की रसोई की भी शुरुआत की हैं जहाँ हर दिन गरीबों को मुफ्त में खाना खिलाते हैं। यानी बेसहारा लोगो को खाना-पानी रहना सब कुछ मुफ्त देते हैं । ये हर दिन करीब 500 लोग प्रभु की रसोई के जरिये खाना खिलाते हैं।