बिहार में लगातार गिरती लचर कानून व्यवस्था पर उठते सवालों के बीच नीतीश सरकार ने बिहार के पुलिस महकमे के लिये शनिवार की शाम बड़ा फैसला लिया। मुजफ्फरपुर में वरीय पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हरप्रीत कौर को प्रोन्नति की बजाय पदावनत (डिमोशन) करते हुये उनका तबादला समस्तीपुर में पुलिस अधीक्षक के तौर पर किया गया है।

यक्ष प्रश्न यह है कि यह तबादला आखिर क्यों? क्या सरकार का यह फैसला समीर कुमार के हत्याकांड में दोषियों को बचाने के लिए लिया गया है। अगर यह तबादला सजा के रुप में है तो फिर से वही जिला क्यों जहाँ वे कार्य कर चुकी हैं, बड़े सवाल खडे़ करता है। यह सही मायनों में तबादला है या किसी को बचाने की दिशा में उठाया गया कदम।

SSP HARPREET KAUR - NITISH

अनुसंधान जब चल रहा है और पुलिस महानिरीक्षक ने समीर कुमार हत्याकांड के अनुसंधान हेतु वरीय पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में जाँच टीम का गठन कर चुके हैं तो एसएसपी को कुछ तार्किक समय दिया जाना अनुसंधान के हित में था। तबादला ही करना था तो घटना होते ही एक-दो दिनों के भीतर तबादला कर दिया जाना चाहिये था।

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वरीय पुलिस अधीक्षक के तबादले में एक बड़ी साजिश की बू आती दिख रही है। वह भी तब जब वे समीर हत्याकांड के गुनहगारों तक पहुंचने के करीब बताई जा रही थीं। कई नेताजी के जाँच के दायरे में आने की प्रबल संभावना बन चुकी थी। कई सफेदपोश एसएसपी के रडार पर थे। समीर कुमार हत्याकांड मामले में कई सफेदपोशों की संलिप्तताओं के मद्देनजर वरीय पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में एसआईटी टीम जाँच कर रही थी। एसएसपी के अनुसार इस आधार पर कई सफेदपोशों का खुलासा होना बाकी था, इस बीच सरकार का यह कदम उनके मेहनत पर पानी फेरने जैसा साबित हुआ है। वरीय पुलिस अधीक्षक के तबादले से चर्चित बालिका गृह कांड के दोषियों को भी ढील मिलने की संभावना जताई जा रही है।

चर्चा यह भी है कि वरीय पुलिस अधीक्षक समीर कुमार की हत्या मामले में प्रशासन, सत्ता, भूमाफिया और अपराधी के गठजोड़ का पर्दाफाश कर बहुत जल्द जनता के समक्ष उनकी सच्चाई उजागर करने वाली थी।

अब सवाल उठता है कि पूर्व महापौर समीर कुमार हत्याकांड मामले में वरीय पुलिस अधीक्षक की जाँच क्या अंतिम चरणों में थी? क्या वे समीर कुमार के हत्यारों तक पहुँचने के करीब थी या साजिशकर्ताओं के गिरेबान तक पहुँच चुकी थी जो संभवतः सत्तासीन मुखिया के करीबी बताये जा रहे हैं। क्या बालिका गृह कांड में एक पूर्व मंत्री पति की संलिप्तता सामने आने पर और उनकी गिरफ्तारी की कवायद में जुटी एसएसपी की गति धीमी करने की मंशा तो नहीं?
क्या सरकार का वोट और सत्ता के द्वंद में फँसकर लिया गया फैसला तो नहीं?

ऐसे कई सुलगते सवाल संदेह और संशय की स्थिति पैदा कर रहे हैं, जिनका संतोषजनक जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं।
लेडी सिंघम के नाम से विख्यात एसएसपी हरप्रीत कौर बढ़ते अपराध और गिरती कानून व्यवस्था का दोषी माना जा रहा है। जबकि गौर करने वाली बात यह है कि हरप्रीत कौर के कार्यकाल में ही चर्चित बालिका गृह कांड का उदभेदन किया गया, और ताबड़तोड़ जाँच कर दर्जन भर दोषियों को जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया। अगर उनकी उपलब्धियों पर गौर करें तो उनकी कार्यशैली पर संदेह नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनके कार्यकाल के दौरान कई वाहन चोर गिरोह का उद्भेदन, पूर्व मंत्री के बॉडीगार्ड को गोली मार कर लूटने वाले अपराधियों की दो दिन में गिरफ्तारी, शराब माफियाओं पर नकेल, करोडो रुपये मूल्यों की शराब बरामदगी, सेक्स रैकेट का भंडाफोड़, केडिया अपहरण कांड उद्भेदन, कई नक्सलियों की गिरफ्तारी, अवैध हथियारों की बरामदगी, कई लुटेरों की गिरफ्तारी और उनकी सूझ-बूझ से कई मौकों पर हिंसक रुप धारण करने वाले वबाल और हिंसा को भी टाला जा सका है। उनके ही पहल और दिशा निर्देश पर क्विक रिसपांस टीम (क्यूआरटी) का गठन कर कई सट्टेबाजों और अवैध शराब व्यवसायियों की गिरफ्तारी की गई।

पर साथ ही साथ उनके कार्यकाल में अपराध में भी बढोत्तरी हुई है, उससे भी इंकार नहीं किया जा सकता। वरीय पुलिस अधीक्षक हरप्रीत कौर के कार्यकाल के दौरान जो सबसे बड़ी वारदात हुई, वो है सरेशाम पूर्व महापौर समीर कुमार की एके-47 से छलनी कर की गई हत्या, जो उनके द्वारा किये गये सभी अच्छे कार्यों को दरकिनार कर देती है। बाईकर गैंग के बुलंद हौसले, क्यूआरटी टीम के गठन के बावजूद अवैध शराब का फलता-फूलता कारोबार, आये दिन महिलाओं से चेन छीनने की घटना, हत्याओं में वृद्धि, चोरी और लावारिस शवों की बरामदगी भी हरप्रीत कौर के पदानवत (डिमोशन) और तबादले का मुख्य कारण माना जा रहा है।

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