सीबीएसई 12वीं में कम अंक आने पर मिठनपुरा रामबाग चौरी निवासी व्यवसायी की पुत्री आकांक्षा कुमारी ने खुदकशी कर ली। घटना रविवार दोपहर उस समय हुई जब घर के सभी सदस्य मौजूद थे। वह ऊपर के कमरे में दुपट्टे को फंदा बनाकर पंखे से झूल गई। काफी देर तक नीचे नहीं आई तो परिजन खोजबीन करने लगे। ऊपर देखा तो दरवाजा सटा था। धक्का देने पर खुला तो भीतर का नजारा देखकर छात्र की मां की चीख निकल पड़ी। शोर मचा घरवालों को बुलाया। शव को पंखे से उतारा गया।
घटना की सूचना मिठनपुरा थानाध्यक्ष विजय प्रसाद राय को मिली तो उन्होंने गश्ती पदाधिकारी को भेजा। मौके पर पहुंचे पदाधिकारी ने उस कमरे की तलाशी ली जिसमें छात्र ने खुदकशी की थी। कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। मामले में यूडी केस दर्ज किया गया है।घटना की सूचना मिठनपुरा थानाध्यक्ष विजय प्रसाद राय को मिली तो उन्होंने गश्ती पदाधिकारी को भेजा। मौके पर पहुंचे पदाधिकारी ने उस कमरे की तलाशी ली जिसमें छात्र ने खुदकशी की थी। कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। मामले में यूडी केस दर्ज किया गया है।
60 प्रतिशत आए थे अंक
परिजन ने बताया कि वह पढ़ने में तेज थी। उसे परीक्षा में अव्वल आने की पूरी उम्मीद थी, लेकिन 60 प्रतिशत अंक आने पर उसकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। रिजल्ट जारी होने के बाद कम अंक देखकर वह तनाव में थी। रात को ठीक से खाना भी नहीं खाया। उसे समझाने की काफी कोशिश की गई। कुछ हद तक वह समझ भी गई थी।
बाजार से लीची खरीदकर आई थी
रविवार को छात्र बाजार गई थी। वहां से लीची खरीदकर लाई। वह खुश दिख रही थी। परिजन भी कम अंक की बात को लगभग भूल चुके थे। घर आने के बाद उसने सामान्य दिनों की तरह व्यवहार किया। इसके बाद पता नहीं क्या हुआ कि अचानक उसने खुदकशी का निर्णय ले लिया।
टूट गया डॉक्टर बनाने का अरमान, बिखर गए सपने
बचपन में ही आकांक्षा पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था, जब उसकी मां की मौत हो गई थी। उस समय वह काफी छोटी थी। परिवार और अपनी दोनों बेटियों को संभालने की जिम्मेदारी उसके पिता पर थी। काफी सोच विचार कर उन्होंने साली से शादी कर ली। ताकि, उनकी बेटियों का अच्छे से ख्याल रख सके। वह दो बहनों में बड़ी थी। पिता से दोनों बेटियों का काफी लगाव था। उसकी हर छोटी बातों का ख्याल रखते थे। मुश्किल घड़ी में एक दोस्त बनकर उसे आगे बढ़ने की सलाह देते। उसे आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाते थे, ताकि, परेशानियों का वह खुद सामना कर सके। लेकिन, एक झटके ने पूरी कहानी बदल दी। पिता के अरमान और बेटी को लेकर देखे गए सपने बिखर गए। छोटी बहन को भी भीतर ही भीतर गम खाए जा रहा था। रोते हुए कहती थी अब कौन उसकी गलतियों पर डांट-फटकार करेगा। पूरे परिवार में मातमी सन्नाटा पसरा था।
डॉक्टर बनने की थी चाहत : पढ़-लिखकर आकांक्षा एक अच्छी डॉक्टर बनना चाहती थी, ताकि गरीबों और असहाय लोगों की सेवा कर सके। पिता की भी दिली तमन्ना अपनी लाडली को डॉक्टर बनते देखना की थी। आसपास के लोग बताते हैं कि वह काफी खुश मिजाज थी। हमेशा हंसते ही दिखती थी।
डांट-फटकार से बढ़ जाती सुसाइडल टेंडेंसी
परीक्षाओं में कम अंक आने पर अभिभावक बच्चों को बिल्कुल न डाटें। उन्हें आगे पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित करें। ऐसे बच्चे जो कम अंक लाते हैं, उनको मनोवैज्ञानिक के पास ले जाकर काउंसलिंग कराएं। घर में एक सकारात्मक माहौल बनाएं, तब जाकर वे अच्छे अंक ला सकते हैं और मानसिक अवसाद के शिकार होने से भी बच्चों को बचाया जा सकता है। मनोरोग विशेषज्ञ अमर कुमार झा का कहना है अंकों के सामाजिक और पारिवारिक दबाव ने परीक्षा व परिणाम का माहौल ही बदल दिया है। कम अंक आने पर भी बच्चों को प्रोत्साहन देना चाहिए।
Input : Dainik Jagran