सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी एक्ट पर दिए अपने फैसले पर रोक लगाने से फिलहाल इनकार कर दिया है। कोर्ट ने सभी पार्टियों से इस मुद्दे पर अपने विचार दो दिनों के भीतर देने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 10 दिन बाद की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र की 20 मार्च के फ़ैसले पर अंतरिम रोक लगाने की गुहार ठुकरा दी। हालांकि कोर्ट ने साफ़ किया कि शिकायत करने वाले पीड़ित एससी एसटी को एफआइआर दर्ज हुए बग़ैर भी अंतरिम मुआवज़ा आदि की तत्काल राहत दी जा सकती है।

इस दौरान कोर्ट ने कहा कि वो ऐक्ट के खिलाफ नहीं है लेकिन निर्दोषों को सजा नहीं मिलनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो लोग सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं उन्होंने हमारा जजमेंट पढ़ा भी नहीं है। हमें उन निर्दोष लोगों की चिंता है जो जेलों में बंद हैं।
दरअसल, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने मांग की थी कि इस मामले की तत्काल सुनवाई होनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि भारत बंद के दौरान हिंसा में करोड़ों की संपत्ति को नुकसान पहुंचा है। हालात बहुत कठिन बने हुए है, इसलिए मामले की जल्द सुनवाई होनी चाहिए। जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने दोपहर 2 बजे सुनवाई का वक्त निर्धारित किया। अटॉर्नी जनरल ने कहा, यह एक आपातकालीन स्थिति है क्योंकि बड़े पैमाने पर हिंसा हुई है।
#SCSTActReview कोर्ट ने कहा कि आदेश संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले जीवन और आज़ादी के आधिकार पर विचार करके दिया गया है। इस अधिकार की रक्षा होनी चाहिए । इस पर अटार्नी ने कहा कि ये अधिकार एससीएसटी के भी है।@JagranNews
— Mala Dixit (@mdixitjagran) April 3, 2018
बता दें कि इस मामले को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करते हुए मामले की जल्द सुनवाई की अपील की थी। सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश संविधान के अनुच्छेद 21 में अनुसूचित जाति, जनजाति को मिले अधिकारों का उल्लंघन करता है।
समाज में पनपा आक्रोश
20 मार्च को दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग पर सवाल उठाते हुए तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। समाज के एक हिस्से में इसका विरोध हुआ था। राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दे पर सरकार के अंदर भी आवाज उठी थी। बाहर विपक्ष जितने सख्त शब्दों में सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहा है, सरकार ने उसी दृढ़ता से हर पहलू पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असहमति जताई और पुराने कानून को आवश्यक बताया। सरकार ने मौखिक दलील का वक्त देने का अनुरोध भी किया है। गौरतलब है कि पुनर्विचार याचिका पर सामान्यतया पुरानी पीठ के जज चेंबर में विचार करते हैं। मसला जब सुनवाई के लिए लगेगा तो जाहिर तौर पर केंद्र सरकार उन सभी बिंदुओं पर दलील देगी। वहीं से पूरे देश को भी संदेश देने की कोशिश होगी कि वह पूरी तरह दलित और आदिवासी हक के साथ खड़ी है।
SC/ ST Protection Act case: Supreme Court, while hearing the submissions by the Attorney General, observed, 'we are not against the Act. Innocent should not be punished.'
— ANI (@ANI) April 3, 2018
तीन तथ्यों पर रद हो सकता है कानून
– अगर मौलिक अधिकार का हनन हो
– यदि कानून गलत बनाया गया हो
– संसद ने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर कानून बनाया हो
यह है कानून में प्रावधान
– अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक कानून 1989 में पीड़ित पक्ष के शिकायत कराते ही कार्रवाई और गिरफ्तारी का प्रावधान है।
– ऐसे मामलों में आरोपितों को अग्रिम जमानत भी नहीं दी जा सकती है। गिरफ्तारी के बाद कोर्ट में सुनवाई के बाद ही जमानत संभव थी।
उग्र आंदोलनों से फासले रखने वाली मायावती समर्थन में उतरीं
राजनीतिक उहापोह में उलझी बहुजन समाज पार्टी ने तेवर बदल लिए हैं। दलित वोट बैंक की वापसी कराने की चाहत में वह सोमवार को आरक्षण आंदोलन के समर्थन में खुलकर सामने आ गई। आमतौर पर उग्र आंदोलनों से दूर रहने वालीं मायावती ने सोमवार को दलित संगठनों के भारत बंद को समर्थन देने के साथ ही अपने कार्यकर्ताओं को भी मैदान में उतारा। इतना ही नहीं आनन-फानन में बयान जारी कर आंदोलन की सफलता पर आभार भी जता दिया और दलित हितों की रक्षा के लिए सड़क पर संघर्ष जारी रखने की घोषणा भी कर डाली। भारत बंद के आह्वान को लेकर रविवार तक मौन साधे रखने वाली बसपा यूं ही नहीं आक्रामक हुई हैं। गत विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अपना न्यूनतम प्रदर्शन करने वाली बसपा को दलित वोट बैंक बचाए रखने की फिक्र सता रही है। उक्त दोनों चुनावों में दलितों का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के पक्ष में जाने से वह बेचैन हैं। भाजपा ने राष्ट्रपति पद पर उत्तर प्रदेश के रामनाथ कोविंद को बैठाकर बसपा की बेचैनी और बढ़ा दी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा दलितों और पिछड़ों को तरजीह देने के कार्यक्रमों से भी बसपा फिक्रमंद है।
भीम आर्मी जैसे संगठनों से चुनौती
दलित बैंक बचाने की चुनौती केवल विपक्षी दलों से ही नहीं मिल रही है, बल्कि दलितों के नए संगठनों से भी मिल रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जिस तरह से भीम आर्मी की लोकप्रियता बढ़ी है, उससे दलित वोट बैंक में बिखराव का खतरा बढ़ा है। भीम आर्मी के समर्थन से ही गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को दलित बाहुल्य जिले सहारनपुर में सफलता मिली और बसपा को खाली हाथ रहना पड़ा।
Input : Dainik Jagran