जिस गांव में इंसान तो इंसान पोखर-तालाब तक रिश्ते में बंधे हों, वहां पानी की उपलब्धता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। लेकिन पर्यावरण की मार यहां भी पड़ी है। तभी तो बगहा दो प्रखंड की चंपापुर गोनौली पंचायत के धंगड़हिया गांव में सैकड़ों वर्ष पुराने ननद और भौजाई नामक दो पोखर सूखे पड़े हैं।
कभी लोगों के आकर्षण का केंद्र रहे इन पोखरों में सैकड़ों टन मछलियां होती थीं। इनका पानी एक दूसरे के साथ अठखेलियां करता था।
दंत कथाओं के अनुसार सतयुग में इन पोखरों की खुदाई कराई गई थी। तब पानी की इतनी किल्लत नहीं थी। कहा जाता है कि पथिकों के लिए पहले भौजाई ने एक पोखर खुदवाया। इससे उत्साहित होकर उनकी ननद ने भी ठीक बगल में दूसरा पोखर खुदवा दिया।
खास बात यह है कि इन दोनों का नाम तो किसी को नहीं पता, लेकिन लोकगीत बिरजाभार में पोखर और पोखर तट पर स्थित एक पकड़ी के पेड़ का जिक्र है। ओजपूर्ण शब्दों में इन पोखरों का बखान किया गया है। कभी दूसरे की प्यास बुझाने वाले 15 एकड़ में फैले ये पोखर आज खुद पानी को तरस रहे हैं।

मछलियों का होता था उत्पादन
कभी इन पोखरों में टनों मछलियों का उत्पादन होता था। इनका सरकारी डाक होता था। इससे सरकार को राजस्व की प्राप्ति होती थी। समय के साथ पोखर का जलस्तर गिरता गया। बीते एक साल से डाक बंद है।
स्थानीय चंदन सिंह, हीरालाल यादव, अलगू यादव, भोटा यादव, हरिलाल उरांव, राजमंगल उरांव और नथुनी पटेल आदि बताते हैं कि इन पोखरों के किनारे स्थित पकड़ी का पेड़ वर्षों पुराना है। वह आज तक सूखा नहीं।
इस अलौकिक धरती पर पानी की कमी के कारण पोखर सूख रहे हैं। कभी ये पोखर पानी से भरे थे। मवेशी यहां पानी पीते थे। कभी-कभी जंगली जानवर भी पानी पीने पहुंच जाते थे। आज यह क्षेत्र पूरी तरह से वीरान हो गया है। प्रशासन को इनके जीर्णोद्धार की व्यवस्था करनी चाहिए।
विधायक ने कहा
वाल्मीकिनगर के विधायक धीरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि दोनों पोखरों के जीर्णोद्धार के लिए सरकार को लिखा जाएगा। यह बगहा की ऐतिहासिक धरोहरों में शामिल हो, इसके लिए भी प्रयास होगा।
Input : Dainik Jagran